अतिथि देवो भव : डॉ पूनम श्रीवास्तव

 


आतिथ्य सत्कार हमारे पूर्वजों के सुंदर व्यवहार से हम सभी को

मिला है। यह सुंदर व्यवहार संस्कार के रूप में हम सभी को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता हुआ हम सभी को समृद्ध किया। आज की पीढ़ी की व्यस्तता में आतिथ्य सत्कार का भाव खंडित होने लगा है इसका कारण है कि हम अपनी नई पीढ़ी को उस ढंग से

संस्कारित नहीं कर पाये जिस ढंग से हमारे पूर्वज हमें संस्कारित कर गये। आज महती आवश्यकता है कि हम अपने धार्मिक ग्रन्थों की मानवीय मूल्यों सम्बंधी कथ्यों को नव पीढ़ी तक पहुंचायें। 

कठोपनिषद् में एक प्रसंग आता है कि, नचिकेता के पिता उद्दालक ने स्वर्ग सुख की कामना से सर्वजित यज्ञ का अनुष्ठान किया। इस अनुष्ठान की प्रक्रिया के अनुसार उन्होंने सर्वस्व दान का संकल्प लिया। जब यह यज्ञ पूरा हुआ तो दान की बात सामने आई। ऋषि ने अपना समस्त गोधन दान कर दिया विचार शील बालक नचिकेता सब कुछ देखता रहा वह विचार करने लगा पिता जी जिन गायों को दान में दे दिये,वे गायें अत्यंत दुर्बल बूढ़ी और असमर्थ थीं। ऐसी निरर्थक गायों का दान करने वाला यजमान अनंद नामक लोक को प्राप्त होता है। वह लोक आनंद रहित और अंधकार से युक्त है। ऋषि उद्दालक के विचार शील पुत्र नचिकेता के मन में दूसरी बात यह है कि जब पिता जी ने सर्वस्व दान का संकल्प लिया है तो उन्हें मुझे भी दान में देना चाहिए मैं भी तो उनकी सम्पत्ति हूँ। यह विचार कर नचिकेता ने पिता उद्दालक से कहा_पिता जी आप मुझे किसको दान में दे रहे हैं ?यही प्रश्न  नचिकेता द्वारा कई बार  पुछे जाने पर क्रोधित पिता ने नचिकेता को कहा कि मैं तुझे यमराज को देता हूँ। बालक नचिकेता पिता से अनुमति लेकर यमराज के यहाँ जाने लगा तो पिता उद्दालक का वात्सल्य उमड़ पड़ा लेकिन नचिकेता ने कहा कि आप इस शरीर का मोह त्याग कर सत्य वचन की रक्षा के लिए मुझे यमराज के यहाँ जाने दें। जिस समय नचिकेता यम के यहाँ पहुंचे उस समय यम घर पर नहीं थे। नचिकेता यम की प्रतीक्षा में तीन दिन तक बिना अन्न जल के यम के द्वार पर बैठे रहे। यमराज के वापस आने पर उनकी पत्नी ने बताया कि नचिकेता ने तीन दिन तक अन्न जल त्याग कर आपकी प्रतीक्षा की है यह सुन यम अत्यंत दुखी हुए और अतिथि के सेवा सत्कार धर्म पर प्रकाश डाले।। तैत्तिरी संहिता के अनुसार अतिथि देवो भव अर्थात अतिथि को देवता माना गया है उसके लिए कहा गया है कि वह गृहस्थ का भोजन नहीं करता, अपितु उसके पापों का भक्षण करता है। इसीलिए अतिथि सेवा को अतिथि यज्ञ भी कहते हैं। अर्थात प्रत्येक गृहस्थ अतिथियों के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें। अतिथि किसी भी जाति का क्यों न हो उसे अतिथि एवं सत्कार योग्य माना गया है विश्व विचार में भारत का उपनिषदीय चिंतन अतुलनीय निधि है।। आतिथ्य धर्म के बारे में यम की पत्नी ने ने कहा कि अतिथि अग्नि रूप में घर आता है अग्नि ही अतिथि के रूप में गृहस्थों के घर में प्रवेश करते हैं सज्जन व्यक्ति उनकी जल आदि से सम्मान जलपान कराके प्रसन्न करते हैं। उनके पुण्य फल बढ़ते हैं और जिस गृहस्थ के घर में अतिथि सत्कार नहीं पाते उनकी आशाओं को सत्कर्म के फल को संतान आदि की प्रगति को सबको हानि मिलती है। अर्थात अतिथि का सत्कार सामर्थ्य पूर्वक करना चाहिए। 

डा पूनम श्रीवास्तव

असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी विभाग

सल्तनत बहादुर पी जी कालेज बदला पुर जौनपुर।

Related

डाक्टर 406057673416151136

एक टिप्पणी भेजें

emo-but-icon

AD

जौनपुर का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

आज की खबरे

साप्ताहिक

सुझाव

संचालक,राजेश श्रीवास्तव ,रिपोर्टर एनडी टीवी जौनपुर,9415255371

जौनपुर के ऐतिहासिक स्थल

item