भारत में सिनेमा : समाज एवं राजनीति पर प्रभाव

 डॉ.कर्मचन्द यादव 'के.सी.'                        

असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग

सल्तनत बहादुर महाविद्यालय बदलापुर, जौनपुर

सिनेमा एवं साहित्य कला की ही  विधाएं हैं। सिनेमा व वेब श्रृंखलाएं सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, पर्यावरण जैसे विषयों पर केंद्रित होती हैं।इन विषयों से संबंधित जीवन के विविध पक्षों का सजीव चित्रण किया जाता है। डाक्यूमेंट्री फिल्म, सिनेमा एवं वेबसीरीज मीडिया के ही एक रूप में हमारे समक्ष गतिशील हैं। सिनेमा व वेब श्रृंखलाएं कलात्मक रूप देने के लिए भले ही काल्पनिकता का सहारा लेती हैं, किन्तु समाज एवं राजनीति पर सकारात्मक प्रभाव डालना ही उनका उद्देश्य है। साथ ही संवेदनाओं , भावनाओं और मानवीय व लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा करना इनका उद्देश्य है।

सिनेमा और वेब श्रृंखलाएं भारतीय समाज का अभिन्न अंग हैं। महिलाओं, किसानों और विशेषकर युवाओं सहित लोगों के बीच यह बहुत लोकप्रिय हैं। ये न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि युवाओं सहित समाज के सभी वर्गों एवं विभिन्न मुद्दों को प्रभावित भी करते हैं। भारत में बहुत-सी ऐसी फिल्में बनी हैं, जिन्होंने समाज और राजनीति को गहराई से प्रभावित किया है। ऐसी फिल्मों ने सामंतवाद, भ्रष्टाचार, जातिवाद, मजदूरों का शोषण, महिलाओं की दयनीय स्थिति, छूआछूत, अशिक्षा, गरीबी और पर्यावरण व जैव-विविधता पर संकट जैसे संवेदनशील एवं नकारात्मक पक्षों के प्रति आम आदमी व युवाओं की समझ को बढ़ाया है। सिनेमा सहित डाक्यूमेंट्री फिल्म, वेब श्रृंखलाओं इत्यादि की बढ़ती लोकप्रियता का कारण इस दौर में इनका ज्वलंत मुद्दों एवं समस्याओं पर केंद्रित होना है। समाज को सकारात्मक व नकारात्मक दृष्टिकोण से प्रेरित करने के लिए सिनेमा साहित्य का सशक्त माध्यम व साधन है। फिल्में बहुत से मुद्दों एवं समस्याओं को उठाकर समाज को नई दिशा दिखाती हैं। ऐसी फिल्मों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं: दोस्ती (मानवीय संबंध व संवेदना), तिरंगा (राष्ट्र-प्रेम), मदर इंडिया (गरीबी,सूदखोरी के खिलाफ), वाटर (महिला उत्पीड़न व विधवाओं को लेकर पाखंडवाद पर आधारित), द केरल स्टोरी (धार्मिक पहलू), आर्टिकिल 15 (विषमता व भेदभाव के खिलाफ), जवान (कृषि, स्वास्थ्य और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ), ओ माई गॉड (आस्था व ईश्वर के अस्तित्व? पर आधारित), कश्मीर फाइल्स (धार्मिक हिंसा), मदारी (राजनीतिक भ्रष्टाचार व गुणवत्ताहीन निर्माण से होती मौतों पर आधारित), आरक्षण (सामाजिक न्याय एवं तर्कसंगत भेदभाव पर आधारित), उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक (सेना व सुरक्षा), सिंघम (पुलिस सुधार), गुठली लाडू (शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त छुआछूत व भेदभाव पर आधारित), ट्वेल्थ फेल (प्रतियोगी परीक्षाओं के संघर्ष पर आधारित), इत्यादि। वेबसीरीज :- पंचायत (ग्रामीण परिवेश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए समस्याओं पर आधारित विचार-विमर्श/तर्कों पर केंद्रित), दिल्ली क्राइम (हाई प्रोफाइल पुलिस अपराध पर केंद्रित), पाताललोक (उच्च और निम्न जातियों के बीच विषाक्त संघर्ष एवं पुलिस की गलत विवेचना पर आधारित), मिर्जापुर (नशीली दवाओं के व्यापार, अवैध हथियार एवं अपराध व अराजकता पर आधारित) आदि। डाक्यूमेंट्री फिल्म :- इंडियाज़ डॉटर (निर्भया सामूहिक बलात्कार पर केंद्रित), गुलाबी गैंग (महिला अधिकारों की लड़ाई पर आधारित), 1232 कि.मी. (कोविड-19 के ख़तरों और प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं पर आधारित), राइटिंग विद फायर (जाति व लिंग आधारित हिंसा, पुलिस की अक्षमता और दलित महिलाओं के संघर्ष पर आधारित) इत्यादि। 

इन डाक्यूमेंट्री फिल्मों, सिनेमा और वेब श्रृंखलाओं के माध्यम से देश की प्रगति के साथ-साथ आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष विद्यमान विभिन्न चुनौतियों को दर्शाया गया है। इनमें अभिनय द्वारा भारतीय समाज के संरचनात्मक मुद्दों जैसे- गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई; पारिवारिक मुद्दों जैसे- विवाह, तलाक, दहेज़, घरेलू हिंसा, शोषण, सामान्य व्यक्तियों के संघर्षों, बुजुर्गों की परेशानियों को दर्शाया गया है, जो कि सामाजिक वास्तविकताओं का यथार्थवादी चित्रण करते हैं। इनमें राजनीतिक एवं धार्मिक भ्रष्टाचार को व्यवहारिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जो कि यथार्थ है। इन कथानकों से देश के न केवल युवा, बल्कि समस्त नागरिक अपने राजनेताओं के चाल-चरित्र और चेहरे को समझ पाते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था में सिनेमा जगत एवं मनोरंजन उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका है। फिल्म उद्योग पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करता है, जिससे रोजगार के अवसर के साथ ही अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान मिलता है।भारत में फिल्मों से उत्पन्न होने वाला राजस्व निरंतर वृद्धि की ओर है। यह वृद्धि टिकट की कीमतों, डिजिटल वितरण और सिनेमा स्क्रीन के विस्तार जैसे कारकों के संयोजन से प्रेरित है। युवा मनोरंजन के प्रमुख उपभोक्ता हैं। सिनेमा और वेब श्रृंखलाएं युवाओं की रूचि के साथ ही उनके व्यक्तित्व को भी निर्मित करती हैं। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता है।

सिनेमा व वेब श्रृंखलाएं न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि देश की संस्कृति एवं परंपराओं को दर्शाती हैं। इनके कथानाकों में भारत की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक विविधता दिखाई देती है, जो भारतीय संस्कृति की समृद्ध टेपेस्ट्री की झलक है। इससे भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं जैसे- परंपराओं, मूल्यों और आकांक्षाओं के प्रति लोगों की समझ बढ़ती है। सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ते रहते हैं। 

इसके साथ ही फ़िल्में नये मूल्यों के प्रचलन को बढ़ावा और नकारात्मक प्रवृत्तियों को प्रचलन से बाहर करने में प्रभावी भूमिका निभाती हैं।

फिल्में भारत की जातीय संरचना एवं जातियों के स्तरीकरण (उच्च-निम्न) को तोड़ने व कमजोर करने के वजाय उसमें और अधिक नकारात्मकता गढ़ती हैं। जातीय श्रेष्ठता के मनोभ्रम को दिखाकर सामंती प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं, जबकि बहुत सी फिल्मों ने जाति निरपेक्षता, समानता आदि मानवीय मूल्यों को महत्व दिया है। उदाहरण के लिए अभिजात्य व उच्च जाति सूचक पात्रों को अत्यंत गरिमापूर्ण श्रेष्ठ रुप में और तथाकथित निम्न जाति सूचक पात्रों को असम्मानित खराब चरित्र वाली छवि में दिखाया जाता है। यह पात्र भले ही काल्पनिक होते हैं, किन्तु जातीय भेदभाव की नकारात्मक मनोवृत्ति को दर्शाते हैं।

सिनेमा भावनात्मक समझ को बढ़ाने के साथ-साथ नकारात्मक पक्षों जैसे- उपभोक्तावादी संस्कृति, भोग-विलास, अपव्यय, मद्यपान, व्यभिचार, साइबर अपराध, अतिवास्तविकता आदि को भी दर्शाती हैं। सिनेमा व वेब श्रृंखलाएं पर्यावरणीय क्षति, बायो-जैविकीय हाथियार, तकनीकी युद्ध, मानवाधिकार उल्लंघन और सीमापार आतंकवाद जैसे खतरों को दिखाकर आमजन व युवाओं को जागरूक करती हैं।

सिनेमा व वेब श्रृंखलाएं युवाओं में विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक जैसे मुद्दों के माध्यम से सकारात्मक एवं नकारात्मक गुण-दोषों को भी बढ़ावा देती रहती हैं। फिल्में जागरूकता बढ़ाने और सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम हैं।

सिनेमा व वेब श्रृंखलाएं विशेष रूप से युवा पीढ़ी के लिए शैक्षिक उपकरण के रूप में भी काम कर सकती हैं। यह जटिल तथ्यों, समस्याओं को आकर्षक तरीके से विभिन्न विषयों, ऐतिहासिक घटनाओं एवं वैज्ञानिक अवधारणाओं का पता लगाने की समझ विकसित करने में मदद करती हैं। युवा मनोरंजन के साथ शिक्षित एवं प्रेरित होते हैं। भारत में युवाओं की आबादी कुल जनसंख्या के आधे से अधिक है। फिल्में और वेब श्रृंखलाएं युवाओं की क्षमता का उपयोग करके देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ  आंतरिक समस्याओं का समाधान कर सकती हैं।

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