"न्याय की चीख" से भरी होगी पत्रकार की श्रद्धांजलि सभा
"एक साल बाद भी न्याय अधूरा: पत्रकार आशुतोष श्रीवास्तव की बरसी पर उठेगा सवाल, मुख्य आरोपी अब भी फरार"
जौनपुर । जिले के निर्भीक पत्रकार आशुतोष श्रीवास्तव की नृशंस हत्या को 13 मई को एक साल पूरा हो जाएगा, लेकिन इस एक साल में न्याय की उम्मीद लगाए बैठे परिजनों और शुभचिंतकों को सिर्फ निराशा ही हाथ लगी है। उनके गांव की रामलीला कमेटी इस दिन एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर रही है, जहां समाज के हर वर्ग के लोग उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे — लेकिन यह श्रद्धांजलि न्याय की चीख से भरी होगी।आशुतोष की हत्या के मुख्य आरोपी नासिर जमाल और उसके साथी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। यह तथ्य न केवल पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि पत्रकारिता जैसे जिम्मेदार पेशे को भी गहरे आघात पहुँचाता है।
दिवंगत पत्रकार के बड़े भाई संतोष श्रीवास्तव का सीधा आरोप है कि नासिर जमाल अकूत संपत्ति और राजनीतिक रसूख के कारण आज भी कानून से बचा बैठा है। "अगर कोई आम व्यक्ति होता, तो अब तक जेल की सलाखों के पीछे होता," संतोष का यह कथन जनमानस की पीड़ा को बयां करता है।
याद दिला दें कि बीते साल 13 मई की सुबह शाहगंज थाना क्षेत्र के सबरहद गांव निवासी आशुतोष श्रीवास्तव की खुलेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। संतोष श्रीवास्तव ने पांच नामजद और पांच अज्ञात लोगों के खिलाफ तहरीर दी थी, जिसमें से दो—हिस्ट्रीशीटर जमीरुद्दीन कुरैशी और अर्फी शेख उर्फ कामरान—व अन्य आरोपियों को बड़ी मशक्कत के बाद गिरफ्तार किया गया।
लेकिन मुख्य साजिशकर्ता नासिर जमाल और उसके साथी सिकन्दर आलम अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। पुलिस द्वारा सिकन्दर पर दस हजार रुपये का इनाम घोषित करना और नासिर की जांच अभी तक पूरी न होना , यह दर्शाता है कि प्रशासन जानता है कि आरोपी कितने खतरनाक और प्रभावशाली हैं—लेकिन इसके बावजूद कार्रवाई शिथिल है।
पत्रकार बिरादरी में रोष है, आमजन में आक्रोश है, और परिजनों की आँखों में आज भी न्याय की उम्मीदें अधूरी हैं। सवाल यह है कि क्या एक साल बाद भी न्याय सिर्फ वादों और औपचारिकताओं तक सीमित रहेगा?