शिक्षकों का गरजता ट्विटर अभियान: स्कूलों के जबरन मर्जर के खिलाफ सोशल मीडिया पर ऐतिहासिक हुंकार

#JusticeForSchoolsChildren ट्रेंड में रहा देशभर में पहले स्थान पर, सरकार की चुप्पी पर उठे तीखे सवाल

जौनपुर। प्राथमिक विद्यालयों के जबरन मर्जर (विलय) के सरकार के निर्णय के खिलाफ उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर आज शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर एक ऐतिहासिक आंदोलन खड़ा कर दिया।

करीब 7 लाख ट्वीट्स के साथ शिक्षक समाज की आवाज़ न केवल गूंज उठी, बल्कि ट्विटर (अब X) पर #JusticeForSchoolsChildren हैशटैग पांच घंटे से अधिक समय तक देशभर में नंबर 1 पर ट्रेंड करता रहा।

यह आंदोलन सिर्फ एक तकनीकी विरोध नहीं था, बल्कि यह बेसिक शिक्षा प्रणाली की अस्मिता, बच्चों के अधिकार और शिक्षकों के सम्मान की लड़ाई बन चुका है। आंदोलन की अगुवाई कर रहे जिलाध्यक्ष अरविंद शुक्ला ने इस अभियान को ऐतिहासिक करार देते हुए सभी शिक्षकों, शिक्षिकाओं और अभिभावकों का आभार व्यक्त किया जिन्होंने अपने ट्वीट्स और विचारों से इस लड़ाई को मजबूती दी।

नींद में सोए ‘जिम्मेदारों’ को जगाने की कोशिश

अरविंद शुक्ला ने तीखे शब्दों में कहा —

"आशा है कि आज का यह ट्विटर अभियान कुंभकर्णी नींद में सोए ‘जिम्मेदारों’ को जगा पाएगा और वे इस अव्यवहारिक, अविवेकपूर्ण और जनविरोधी निर्णय पर पुनर्विचार करेंगे।"

उन्होंने यह भी कहा कि यह आंदोलन बच्चों के भविष्य की रक्षा के लिए है, जिसमें शिक्षकों के साथ-साथ आम अभिभावकों की भी सहभागिता यह साबित करती है कि सरकार का यह निर्णय लोकतंत्र और शिक्षा दोनों के खिलाफ है।

आंदोलन का दूसरा चरण और आगे की रणनीति

ट्विटर पर उमड़े जनसैलाब को देखकर यह स्पष्ट हो गया है कि शिक्षक समाज अब चुप बैठने वाला नहीं है। यह सिर्फ आंदोलन का दूसरा चरण है — यदि सरकार ने अब भी शिक्षकों और बच्चों की आवाज़ नहीं सुनी, तो यह आंदोलन सड़क से संसद तक ले जाया जाएगा।

प्रतिक्रिया में दिखी शिक्षक समाज की एकता

जिले भर के शिक्षकों में इस अभियान को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा गया। शिक्षकों ने अपने ट्वीट्स के माध्यम से कहा कि—

  • "स्कूल मर्जर शिक्षा की हत्या है।"
  • "बच्चों को स्कूल से दूर करने की साजिश बंद करो।"
  • "हम बच्चों के अधिकारों के लिए हर मंच पर आवाज़ उठाएंगे।"

 यह ट्विटर अभियान सिर्फ एक वर्चुअल प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह शिक्षा के अस्तित्व की लड़ाई की शुरुआत है। अब सवाल यह है कि क्या शासन-प्रशासन इस जनज्वार को सुनेगा या फिर इस आग में और घी डालेगा?


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