आदमखोर जानवरों ने पांच बकरियों को बनाया शिकार, पेट फाड़कर खा गए अतड़ियां, पी गए खून

 ग्रामीणों ने वन विभाग की लापरवाही पर जताई नाराजगी 

जौनपुर । शाहगंज कोतवाली क्षेत्र के अरन्द गांव में बीती रात आदमखोर जंगली जानवरों के हमले से हड़कंप मच गया। स्वर्गीय चुल्लूर राजभर के मवेशी घर में घुसकर खूंखार जानवरों ने पांच बकरियों को मार डाला और उनके कलेजे व पेट के मुलायम हिस्सों को नोच-नोच कर खा गए। इतना ही नहीं, जानवरों ने बकरियों का खून पीकर मवेशी घर को खौफनाक मंजर में बदल दिया

घटना के बाद पूरे गांव में दहशत और सनसनी फैल गई है। ग्रामीणों का कहना है कि तेंदुए या लकड़बग्घे जैसे जंगली जानवरों ने इस खौफनाक वारदात को अंजाम दिया है।

जमीन पर पड़े आदमखोर जानवर के पंजे के निशान


विधवा महिला पर टूटा कहर

इस हमले की सबसे बड़ी पीड़िता शीला देवी राजभर, पत्नी स्व. राजेंद्र उर्फ चुल्लूर राजभर हैं, जो गरीबी में मजदूरी और पशुपालन कर गुजर-बसर करती हैं। घटना वाली रात भारी बारिश के कारण वह शोर सुनने के बावजूद बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर सकीं।
सुबह मवेशी घर पहुंचते ही शीला देवी ने बकरियों को मृत हालत में देखा और जोर-जोर से चिल्लाने लगीं। आसपास के लोग दौड़े और देखते ही देखते भारी भीड़ जुट गई।

ग्रामीणों ने बताया कि बकरियों को इतने वहशी तरीके से मारा गया था कि उनके कलेजे और पेट के हिस्से निकाल लिए गए थे, जबकि साथ बंधी भैंस को जानवरों ने हाथ तक नहीं लगाया।

हमले के बाद मिले खौफनाक निशान

घटना स्थल और आसपास के खेतों में जंगली जानवरों के पंजों और नाखूनों के गहरे निशान मिले हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह हमला तेंदुए या लकड़बग्घे जैसे किसी हिंसक जानवर का हो सकता है।

 सूचना मिलने पर पहुंचे अधिकारी

गांव के प्रबुद्ध नागरिक रामनयन वर्मा ने तत्काल राजस्व और वन विभाग को सूचना दी।
हल्का लेखपाल मनीष श्रीवास्तव और पशु चिकित्सा विभाग की टीम मौके पर पहुंचकर मृत बकरियों की जांच में जुटी, लेकिन वन विभाग के किसी वरिष्ठ अधिकारी के न पहुंचने से ग्रामीणों में गहरा रोष है।

पड़ोसी गांव भरौली में भी हो चुका है हमला

10 दिन पूर्व भरौली गांव में भी ऐसी ही घटना हुई थी, जहां छह जानवरों को आदमखोर जानवर ने मार डाला था। यह लगातार हो रही घटनाएं अब सुरक्षा व्यवस्था और वन विभाग की सक्रियता पर सवाल उठा रही हैं।

  अब गांव में शाम होते ही सन्नाटा

ग्रामीणों में भय का माहौल ऐसा है कि शाम होते ही बच्चे घरों से बाहर नहीं निकल रहे
लोग खेतों में जाना बंद कर दिए हैं, और बाहर सोने की परंपरा भी अब समाप्त हो चुकी है।
गांव के रामनयन वर्मा, शिवजोर और छोटेलाल गौतम ने बताया कि पिछले पखवाड़े से तेंदुए जैसी आहट सुनाई दे रही थी, लेकिन प्रशासन और वन विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

   ग्रामीणों की मांग

  • गांव और आसपास के क्षेत्र में वन विभाग की गश्त शुरू की जाए।
  • आदमखोर जानवरों को पकड़ने के लिए पिंजड़े लगाए जाएं।
  • पीड़िता शीला देवी को मुआवजा और सहायता राशि दी जाए।
  • घटना को लेकर वन विभाग के अधिकारियों पर लापरवाही का मुकदमा दर्ज किया जाए।

      जिम्मेदार कब जागेंगे?
लगातार हो रही इन घटनाओं ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि ग्रामीण इलाकों में सुरक्षा को लेकर वन विभाग की तैयारियां बेहद कमजोर हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन जागरूक होता है या ग्रामीण खुद सुरक्षा के उपाय करने को मजबूर होते हैं।

रिपोर्ट: इंद्रजीत मौर्या 

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