जौनपुर में खेल दिवस बना खानापूर्ति का पर्याय, खुद खेल मंत्री ने किया कार्यक्रम से किनारा!
जौनपुर। खेल और युवा कल्याण को समर्पित 'राष्ट्रीय खेल दिवस' इस बार जौनपुर में मात्र रस्म अदायगी बनकर रह गया। विश्व विख्यात हॉकी सम्राट स्वर्गीय मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस पर जिले में आयोजित खेल दिवस समारोह ने खेल विभाग की लापरवाही, उदासीनता और दिखावटी प्रबंधन की पोल खोल दी।
हैरानी की बात यह रही कि खेल मंत्री गिरीश चंद्र यादव खुद जिले में मौजूद होने के बावजूद अपने ही विभाग के इस गरिमामयी आयोजन से दूरी बनाए रखी। उनकी अनुपस्थिति ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या खेल दिवस उनके लिए महज एक औपचारिकता भर है? राज्य सभा सदस्य सीमा द्विवेदी व मंत्री महोदय की जगह उनके दोनों भाई गेस्ट बनकर कार्यक्रम में शामिल हुए, जिससे यह पूरा आयोजन 'पारिवारिक शो' जैसा प्रतीत हुआ।
खेल दिवस या बच्चों की भीड़ जुटाने की कवायद?
खेल विभाग ने महज इन्दिरा गांधी स्पोर्ट्स स्टेडियम और उसके बगल के एक स्कूल के कुछ बच्चों को बुलाकर ‘खेल दिवस’ की खानापूर्ति कर दी। जहां एक ओर देशभर में इस दिन को बड़े सम्मान और प्रेरणा के रूप में मनाया जाता है, वहीं जौनपुर जैसे बड़े जिले में यह आयोजन मात्र एक स्कूल बनाम स्टेडियम की टीम तक सिमट गया।
फाइनल मैच स्टेडियम की टीम और जयकरन पूर्व माध्यमिक विद्यालय सैदपुर गड़ऊर के बीच खेला गया, जिसमें स्टेडियम की टीम ने 3-1 से जीत दर्ज की। लेकिन सवाल यह है कि क्या जिले भर में यही दो टीमें थीं जो राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी की स्मृति में खेले गए आयोजन में भाग लेने लायक थीं?
खुद की पीठ थपथपाने में व्यस्त विभाग
खेल दिवस पर आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत लखनऊ से हुई मुख्यमंत्री के 'फिट इंडिया' कार्यक्रम की लाइव स्क्रीनिंग के साथ, जिसे LED वॉल पर दिखाया गया। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इसके इतर जौनपुर के खेल विभाग ने इस दिन को महज टी-शर्ट और हॉकी बाँटने तक सीमित कर दिया।
कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद सीमा द्विवेदी, जिला पंचायत सदस्य श्यामबाबू यादव और ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि सुनील यादव को मुख्य और विशिष्ट अतिथि बनाकर बधाई, बुके और अंगवस्त्रों से स्वागत किया गया, परंतु असल उद्देश्य – युवाओं को खेलों से जोड़ना – कहीं पीछे छूट गया।
मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि या औपचारिक भाषणों की महफिल?
मेजर ध्यानचंद जैसे महान खिलाड़ी के गौरवमयी इतिहास की चर्चा तो खूब हुई, लेकिन उस विरासत को आगे ले जाने का ज़मीनी प्रयास कहीं नहीं दिखा। विभागीय अधिकारी मंच पर भाषण देने में जुटे रहे, लेकिन मैदान पर न तो खिलाड़ियों की भीड़ थी, न कोई व्यापक सहभागिता।
वहीं, यह भी आश्चर्यजनक है कि खेल मंत्रालय भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के बाद भी, जिले में किसी प्रकार की विस्तृत योजना या प्रतियोगिताएं आयोजित नहीं की गईं।
खेल दिवस जैसे महत्वपूर्ण आयोजन से खुद मंत्री का दूरी बनाना और विभाग द्वारा केवल ‘कागजी काम’ कर देना एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है। क्या यह कार्यक्रम केवल सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज कराने भर के लिए किया गया? क्या खिलाड़ियों के सपनों और उनकी प्रेरणा के प्रतीक ध्यानचंद जी के सम्मान में आयोजन करना हमारी प्राथमिकता नहीं रही?
जिलावासियों और खेल प्रेमियों का यह मानना है कि जब खुद मंत्री अपने गृह जनपद में अपने विभाग के कार्यक्रम को तवज्जो नहीं देते, तो बाकी अधिकारी और कर्मचारी कितनी गंभीरता से कार्य करेंगे – यह समझना मुश्किल नहीं।
जौनपुर में आयोजित ‘खेल दिवस’ केवल एक औपचारिक, सजावटी, निमंत्रण पत्रों और टी-शर्ट वितरण का तमाशा बनकर रह गया। खेल मंत्री की गैरहाज़िरी, खिलाड़ियों की न्यूनतम भागीदारी और विभाग की ठंडी रुचि ने यह साफ कर दिया कि ‘खेल दिवस’ को जिले में गंभीरता से नहीं लिया गया।
यदि यही रवैया जारी रहा, तो हम न केवल ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों की विरासत को भुला देंगे, बल्कि युवाओं को खेल से जोड़ने का सुनहरा अवसर भी खो देंगे।