बिल की जुगाड़ में पसीने-पसीने पूर्वांचल विश्वविद्यालय के गुरुजी

7 लाख के बिल का रहस्य!

पूर्वांचल विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर की तीन साल पुरानी बिल की तलाश, गोरखपुर तक दौड़े… हाथ लगा सिफर

जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। विश्वविद्यालय के एक असिस्टेंट प्रोफेसर तीन साल पुराने जीएसटी सहित बिल की तलाश में जौनपुर से लेकर गोरखपुर तक की दुकानों और सप्लायरों की खाक छान रहे हैं। लाख जतन के बाद भी उन्हें अभी तक सफलता नहीं मिली।

सूत्रों के अनुसार, तीन वर्ष पहले संकाय भवन स्थित एक विभाग को विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन हेतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने करीब 7 लाख रुपए की धनराशि उपलब्ध कराई थी। कार्यक्रम तो सम्पन्न हो गया और पैसा भी पूरा खर्च हो गया, लेकिन आज तक उन खर्चों का जीएसटी सहित पक्का बिल विश्वविद्यालय प्रशासन को नहीं सौंपा गया।

विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने कई बार नोटिस देकर प्रोफेसर से बिल मांगा, मगर हर बार उन्होंने टाल दिया। अब जब नई कुलपति ने कार्यभार संभालते ही इस पर सख्ती दिखाई, तब “गुरुजी” हड़बड़ा गए और पुराने सप्लायरों से लेकर विश्वविद्यालय में सप्लाई करने वाले दुकानदारों तक से बिल की भीख मांगने लगे।

स्थिति यह है कि दुकानदारों ने फर्जी बिल देने से साफ इनकार कर दिया, जिसके बाद असिस्टेंट प्रोफेसर गोरखपुर तक दौड़ लगा आए, लेकिन वहां भी नतीजा ढाक के तीन पात रहा।

अब बड़ा सवाल यह है कि जब तीन साल पहले सामान खरीदा गया था तो उस समय पक्की रसीद क्यों नहीं ली गई? आखिरकार लाखों रुपये के खर्च में पक्के बिल का न होना कहीं न कहीं “गोलमाल” की गवाही देता है।

विश्वविद्यालय के गलियारों में यह मामला इन दिनों चर्चा का सबसे गर्म विषय बना हुआ है—क्या असिस्टेंट प्रोफेसर खुद को बचाने के लिए बिल खोज रहे हैं, या फिर बिलों के बहाने कोई और राज़ दबा हुआ है?


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