नित्य प्रणाम से जीवन में आती है आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि: डॉ. रजनीकान्त द्विवेदी
डॉ. द्विवेदी जी महाराज ने कहा कि जब मनुष्य के भीतर अभिमान जागृत होता है, तो उससे अस्ति और प्राप्ति जैसी दो विकृतियां जन्म लेती हैं, जो व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती हैं। इन विकृतियों से मुक्ति केवल गोविन्द की शरण में जाने से ही संभव है। ईश्वर की शरणागति ही जीवन को संतुलन और शांति प्रदान करती है।
कथा के दौरान रासलीला प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि वही गोपी सच्ची गोपी है जिसने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो। ऐसी आत्मसंयमी गोपी को ही भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची शरणागति प्राप्त होती है। इसके साथ ही कंस वध, श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह सहित अन्य दिव्य प्रसंगों पर भी उन्होंने विस्तार से और भावपूर्ण ढंग से कथा का रसास्वादन कराया।
इससे पूर्व मुख्य यजमान जितेन्द्र चतुर्वेदी, मधुकर चतुर्वेदी, मिलन चतुर्वेदी, मनोज चतुर्वेदी, यशार्थ चतुर्वेदी सहित अन्य परिजनों द्वारा विधिवत श्रीमद्भागवत जी एवं व्यास पीठ का पूजन-अर्चन किया गया।
कथा में विशेष रूप से भिलाई स्टील अथॉरिटी के एमडी संजय तिवारी, त्रिलोकी तिवारी, सुरेश गुप्ता, पं. आनंद मिश्रा, रितेश गुप्ता, राधे कृष्ण, धीरेन्द्र चतुर्वेदी, नकुल, अतुल, कपिल चतुर्वेदी, हेमा श्रीवास्तव, मधु चतुर्वेदी, यशी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। कथा स्थल पर प्रतिदिन श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है, जिससे वातावरण भक्तिमय और आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत बना हुआ है।

