पूर्वांचल विश्वविद्यालय ने एनसीसीएफ को किया ब्लैकलिस्ट, करोड़ों का भुगतान रोका
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय ने एक अभूतपूर्व और सख़्त कदम उठाते हुए एनसीसीएफ (NCCF) संस्था को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। यह कार्रवाई दीक्षांत समारोह के दौरान हुई गंभीर लापरवाही—राज्यपाल के कार्यक्रम के बीच संगोष्ठी भवन की लाइट बंद हो जाने—की जांच के बाद की गई। विश्वविद्यालय के इस फैसले से ठेकेदारों और कुछ कर्मचारियों में जबरदस्त हड़कंप मच गया है।
दरअसल, दीक्षांत समारोह के दौरान जब राज्यपाल आनंदीबेन पटेल छात्र-छात्राओं को उपाधियां और मेडल प्रदान कर रही थीं, उसी समय बिजली गुल हो गई थी। इस घटना पर राज्यपाल ने कड़ी नाराजगी जताई थी। प्रारंभिक कार्रवाई में ऑपरेटर धीरज श्रीवास्तव को निलंबित किया गया था, हालांकि बाद में तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट में उनकी कोई प्रत्यक्ष लापरवाही नहीं पाई गई, जिसके बाद उन्हें बहाल कर दिया गया।
जांच समिति की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दीक्षांत समारोह के दौरान उपयोग में लाए गए यूपीएस, जनरेटर और अन्य संसाधन घटिया गुणवत्ता के थे। इन सभी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी एनसीसीएफ संस्था की थी। रिपोर्ट के मुताबिक—
यूपीएस में गंभीर तकनीकी खामियां पाई गईं
जनरेटर और बिजली बैकअप व्यवस्था मानकों पर खरी नहीं उतरी
कई बार सुधार के लिए रिमाइंडर दिए गए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई
जांच में एनसीसीएफ और उसके अधीन काम कर रही फर्मों की घोर लापरवाही सामने आई।
सूत्रों के अनुसार, एनसीसीएफ के तहत करीब आधा दर्जन ठेकेदार विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। अब तक लगभग 12 करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका था, जबकि करीब 25 करोड़ रुपये की परियोजनाएं लंबित हैं। ब्लैकलिस्ट होने के बाद सभी भुगतान रोक दिए गए हैं, जिससे ठेकेदारों में खलबली मची हुई है।
यह कठोर निर्णय कार्य परिषद की बैठक में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता कुलपति प्रो. वंदना सिंह ने की। बैठक का संचालन कुलसचिव केशलाल ने किया। इस दौरान वित्त अधिकारी आत्मधर द्विवेदी, परीक्षा नियंत्रक डॉ. विनोद कुमार सिंह, प्रो. राजेश शर्मा, प्रो. रामनारायण, प्रो. बेचन शर्मा, प्रो. रमेश कुमार, डॉ. प्रमोद कुमार यादव सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहली बार है जब किसी बड़ी सप्लाई व निर्माण एजेंसी पर इतनी कड़ी कार्रवाई की गई है। साफ संदेश है कि राज्यपाल के कार्यक्रम में लापरवाही किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
विश्वविद्यालय के इस फैसले को प्रशासनिक सख्ती के रूप में देखा जा रहा है, जिसने न सिर्फ ठेकेदारों बल्कि व्यवस्था से जुड़े हर स्तर पर जवाबदेही का डर पैदा कर दिया है।

