परमात्मा को धारण करने वाला हो जाता है बंधन से मुक्तः राघवदास
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जौनपुर। चैसठ कला में निपुण साक्षात् भगवान नारायण स्वरूप में श्रीकृष्ण भगवान की जन्मोत्सव कथा व उनके जन्म की गुणवत्ता पर प्रकाश डालते हुये भगवान के जन्म पर माता यशोदा द्वारा स्नेहिल व प्यार रस से परिपूर्ण सोहर सुनाते हुये राघवदास जी महाराज स्वयं प्रेम विह्वल हो गये और श्रोताओं के मन को मोह लिये। उक्त विचार महाराज जी ने जौनपुर-मल्हनी मार्ग पर स्थित शिकारपुर में आयोजित 7 दिवसीय भागवत कथा के 5वें दिन भगवान श्रीहरि का जन्म प्रसंग सुनाते हुये व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि जब राजा कंस के अत्याचार से धरती माता को असहनीय पीड़ा हुई तो गऊ (गाय) का स्वरूप धारण कर ब्रह्मा के पास पहुंचकर अपनी वेदना बतायी। ब्रह्मा जी ने ध्यान करके श्री नारायण जो ब्रह्माण्ड के पालनहारी हैं, से कहा तो उन्होंने ब्रह्मा को राधा के पिता वृशभान होकर जन्म लेने को कहा और स्वयं वासुदेव-देवकी के पास बंदीगृह में अवतरित होने को बताया। कथावाचक ने बताया कि जब जीव परमात्मा को धारण करता है तो समस्त बंधन से मुक्त हो जाता है और जब माया को धारण करता है तो विभिन्न प्रकार के बंधनों में जकड़ जाता है। श्रीकृष्ण के अवतार होते ही वासुदेव के सभी बंधन मुक्त हो गये परन्तु नन्द के घर से माया को लेकर बंदीगृह पहुंचते ही सभी बंधनों में जकड़ गये। उन्होंने बताया कि श्रीहरि के जन्मोत्सव पर जिस प्रकार धूमधाम से नन्द-यशोदा ने उत्सव मनाया और यशोदा ने ‘चन्दा आरे आवा, पारे आवा, अंगुरी इशारे आवा हो। चन्दा वनि जात सोने का खिलौना, कन्हैया तोहसे खेलतेन हो, सुनाया। अन्त में कथा आयोजक डा. स्वामीनाथ ने बताया कि 21 जनवरी को कथा का समापन होगा जिसके बाद प्रसाद वितरण का कार्यक्रम सम्पादित होगा।
