ये है एशिया का सबसे पुराना शहर
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दुनिया के सबसे पुराने शहरों में शामिल काशी की
प्राचीनता को लेकर तमाम रिसर्च किए जा रहे हैं। कई यात्रियों और लेखकों ने
अपने अनुरूप काशी का जिक्र किताबों और लेखों में किया है।
सबसे पहले काशी का जिक्र चीनी यात्री ह्वेन त्संग ने किया, इसके
अनुसार हर्ष वर्धन के शासन काल (606 से 47 ई.) में काशी अस्तित्व में आया
था। इन्होंने यहां के मंदिरों, नगरों और लोगों का विस्तृत वर्णन किया। बाद
में 8वीं सदी के विद्वान पंत ने तत्कालीन काशी का सामाजिक और धार्मिक जीवन
शैली का वर्णन किया।
अल्बरूनी ने 11वीं सदी में काशी का वर्णन करते हुए लिखा हिन्दुओं के
कुछ स्थान उनके कानून और धर्म की वजह से पवित्र हैं। लार्ड मैकाले ने काशी
के बारे में कहा कि यह नगर एशिया का सबसे बेजोड़ शहर है।
किसने और क्या कहा
चीनी यात्री ह्वेन त्संग (606 से 47 ई.) ने वर्णन करते हुए लिखा कि
काशी की परिधि 500 मील की थी। चौड़ाई 3/3/4 मील और 1/1/2 मील लंबाई थी। यह
घनी आबादी वाला प्राचीन शहर था। इस नगरी में सौ से ऊपर देवालय और 10,000
हजार से ऊपर लोग वास करते थे। 8वीं सदी के विद्वान् पंत ने लिखा कि दूरस्थ
स्थानों से तीर्थ यात्री उस समय भी आया करते थे। पंत ने यहां के क्षेत्रों
और गलियों का विस्तृत वर्णन किया है।
उन्होंने वर्णन किया कि रसातल, पृथ्वी और स्वर्ग तीनों लोकों में जो
उत्कृष्टम है, वह सब कुछ काशी में है। अल्बरूनी ने 11वीं सदी में सबसे
ज्यादा काशी के बारे में लिखा। उन्होंने लिखा साधू यहां मृत्यु प्राप्ति को
आते थे। मोहम्मद गजनवी के समय यहां के तमाम हिन्दू अलग-अलग जगहों पर चले
गए और इससे हिन्दू धर्म का प्रसार हुआ।
12वीं सदी के बाद क्या लिखा गया काशी पर और कहां बनती थी मुगलों की पगड़ी
12वीं सदी के भट्ट लक्ष्मीधर ने कृत्य कल्पतरु में काशी के मंदिरों की
प्राचीनता पर गहन अध्यन कर लिखा कि यहां 342 मंदिर अति प्राचीन है। देव,
देवी, नाग, ऋषि, असुर सभी देवालय स्थापना के इक्षुक रहे। उन्होंने
ज्ञानवापी और मंगलागौरी मंदिर का कुछ जिक्र भी किया। वहीं पं दामोदर शर्मा
ने उक्ति व्यक्ति प्रकरण (12वीं सदी) में काशी की दैनिक दिनचर्या का वर्णन
किया।
इस पुस्तक में ब्राह्मण पूजा, मंत्र-तंत्र, श्राद, नौकर, नौकरानियां,
जुआ, कुश्ती, वस्त्र, रहन-सहन का विस्तृत वर्णन किया है। राल्फ फिच पहले
अंग्रेज हैं, जिन्होंने 1584 में काशी पर लिखा। वह अकबर के शासन काल में
काशी आए थे। यहां मुगलों की पगड़ी का उत्पादन हुआ करता था।
इन्होंने वाराणसी के घाटों और मंदिरों का वर्णन किया। पक्के महल
क्षेत्र का विशेष जिक्र किया। मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के बारे में भी काफी
लिखा गया और उस समय रीति-रिवाज का भी उल्लेख मिलता है।
स्वर्ण और रजत जरी वस्त्र कब काशी से विदेशों में जाने लगे
17वीं शताब्दी में मनूची ने लिखा कि बनारस से स्वर्ण और रजत जरी के
वस्त्र विदेशों में निर्यात होते थे। उन्होंने घाटों का मनोरम दृश्यों का
भी उल्लेख किया। जीवन शैली, अल्लहड़ पन और गलियों में बढ़ते जीवन को बताया।
18वीं शताब्दी में लॉर्ड मैकाले ने काशी के बारे में कहा कि यह नगर
धन, जनसंख्या सम्मान तथा पवित्रता के विषय को लेकर एशिया का बेजोड़ शहर है।
मैकाले ने उस समय कहा था पांच लाख लोगों की भीड़, मंदिर, मीनारे, हवेलियां
और गलियां अद्भुत है। उन्होंने सांडों और सीढ़ियों की भी जबरदस्त तारीफ़ की
थी।