मानव के अन्तःकरण के भाव ही कराते हैं व्यक्तित्व का निर्माणः राघवदास
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जौनपुर। जिस समय रसिका व भावुका लोगों के लिये शुक्र देव ने सकल मनोरथ सिद्ध कराने हेतु कल्प वृक्ष में भागवत रूपी फल का भार्दुभाव कराया था जिससे प्रत्येक प्राणी के मनोरथ पूरे होंगे। उक्त विचार विकास खण्ड करंजाकला के शिकारपुर गांव में आयोजित सात दिवसीय भागवत पाठ के दौरान उपस्थित भीड़ के बीच व्यास गद्दी पर आसीन राघवदास जी महाराज ने व्यक्त किया। जिला मुख्यालय-‘मल्हनी मार्ग पर 10 किमी दूरी पर स्थित उक्त गांव में चल रहे पाठ के दूसरे दिन महाराज ने राजा परिक्षित के जन्म का वर्णन करते हुये प्रवचन रूपी अमृतवर्षा किया और कहा कि जब अभिमन्यु का भार्या उतरा के गर्भ में पल रहे शिशु को अन्तद्र्वन्दवश द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा ने ब्रह्म अस्त्र का प्रयोग कर उस शिशु को मारने का षड्यंत्र किया तो ब्रह्म अस्त्र की तप्त ज्वाला से बचाने हेतु वासुदेव भगवान ने अपनी गदा को चक्र की भांति घुमाते हुये गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा किया। उस गर्भावस्था में पल रहे शिशु में चतुर्भुज वासुदेव जी को देखा था और जन्म के बाद वह बालक उन्हीं चतुर्भुजधारी के रूप को सभी में निहारने का प्रयास करता। अर्थात् वह सभी की परीक्षा लेता कि कहीं तो उस नारायण की दरश हो जाय, इसलिये उस बालक का नाम ही परिक्षित रखा गया। अन्त में महाराज जी ने कहा कि व्यक्ति अपने हृदय के अन्तःकरण जैसे भाव को समाहित कर लेता है, उसी प्रकार के कर्म उससे होता है। कर्म के अनुसार ही वह जगत में माना जाता है। इस अवसर पर आयोजक डा. स्वामीनाथ के अलावा बृजेश गुप्ता, सुनील सिंह आदि मौजूद रहे।
