20 वर्ष बाद पुराने घर लौटी सियासत की धारा

 जौनपुर : 20 वर्ष बाद फिर वक्त लौट आया। पहले जिले की सियासत पिता उमानाथ सिंह के इर्द-गिर्द घूमती थी, अब यह पुत्र कृष्ण प्रताप सिंह 'केपी' पर केंद्रित होने की स्थिति में आ चुकी है। 13 सितंबर 1994 को उमानाथ सिंह की मृत्यु के बाद भाजपा का एक मजबूत किला धराशाई हो गया, फिर उसके बाद विभिन्न पदों पर यदा-कदा भाजपा अपना भगवा झंडा बरदारों के सहारे फहराती रही। चार बार बयालसी से विधायक और 1991 में उप्र सरकार में कारागार मंत्री उमानाथ सिंह के निधन के बाद इस तख्त से सियासत रुख्सत कर गई और भाजपाई राजनीति की मुख्य धारा में और कई नेता समय-समय पर आ गए। अचानक सक्रिय हुए केपी को भाजपा ने उनके पिता के योगदान व कुर्बानियों को देख गंभीरता से लिया और लोकसभा चुनाव के समर में हरी झंडी दे दी। जनता ने भी इस पर जोरदार मुहर लगा दी। अब जिले भर में इस बात की चर्चा है कि कभी मजबूत तख्त सूना हुआ था, अब उसी स्थान से सांसद चुने जाने पर जिले में भाजपा की राजनीति एक बार फिर यहां आकर केंद्रित हो गई।

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