चीन के अमंगल से क्या सबक लेगी दुनिया

   प्रभुनाथ शुक्ल
चीन के शंघाई से नववर्ष से उमंग के उन्माद से जुड़़ी बुरी खबर आयी है। जिस अंग्रेजी नव वर्ष को मानने वहां की युवा जमात प्रसिद्ध तटीय पर्यटक स्थल बुंड में जमा हुई थी। वहां भगदड़ मचने से 35 से अधिक बेगुनाह युवाओं की जान चली गयी। जबकि 42 से अधिक घायल हो गए। नव साल का जश्न नयी उम्मीदों और संभावनाओं से ताल्लुक रखता है। किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी कि वहां इस तरह का हादसा हो जाएगा। यह सब कब हुआ। कैसे हुआ और क्यों हुआ यह पता नहीं चल सका है। लेकिन यह खबर पूरी दुनिया का स्तब्ध कर देने वाली है। अक्सर यह देखा गया है कि भीड़ भाड़ वाले समारोहों में हम उत्साह के अतिरेक में सुरक्षा और सतर्कता के जरुरी उपायों को हम भूल जाते हैं। यह हमारी सबसे बडी खामी है। जिसके चलते इस तरह के हादसे होते हैं। जहां हम जीवन की नयी आशाओं और अपेक्षाओं को सहेजने इकटठा हुए थे वहां हमने जोश में आकर सब कुछ खो दिया। यह मानवीय मूल्यों और जीवन के मूल्यों के लिए बड़ी घटना है। बुंड बीच पर जमा हुए युवा आनंद के साथ नयी उम्मीदें भी पाली थी लेकिन उसका वाक्ता अब हमेशा के लिए खत्म हो गया। इस हादसे के पीछे कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन कहीं न कहीं से हमारा समाज खुद इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार जबाबदेह है। हम जीवन को सहजता और सरलता से नहीं लेते हैं। हम आनंद को आनंद के रुप में नहीं स्वीकारते हैं। निश्चित तौर पर चीन की घटना के पीछे कोई न कोई असावधानी रही होगी। जिससे वहां मौजूद हजारों की भीड़ ने उत्साह के आनंद में भूला दिया। सुरक्षा और सतर्कता की तरफ ध्यान नहीं दिया। इसमें कोई दोय राय नहीं है कि दुनिया भर में इस तरह के उत्सवों मंे हमारी युवा पीढ़ी अधिक बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती है। आनंद और उत्साह के दौरान वह कुछ जरुरी सतर्कता और सावधानियां भूल जाती है। अक्सर इस तरह के समारोहों में नशे का बोला बाला रहता है। शैंपेन की बोतले टूटती हैं और नशे में लोग धूत हाकरे अश्लीन गीतों पर आधी रात को हुड़दंग की हुल्लड़बाजी में शरीक होते हैं। होटलों, रेस्तराओं, बीचों, क्लबों, सार्वजनिक स्थलों पर तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। हालीवुड, वालीवुड इसमें बढ कर भाग लेता है। केक काटे जाते हैं पटाखें और फुलझड़ियां छोड़ी जाती हैं। आधी रात के बाद लोग एक दूसरे को हैप्पी न्यू ईयर बोकर बधाईयां देते हैं। लड़के-लड़कियां जोड़ों में शराब के नशे में धुत उत्सव का आनंद लेते हैं। आधुनिक युग में मोबाइल मैसेजिंग, टयूट ,फेसबुक, वाटशप के जरिए लोगों को बधाईयां देते हैं। मोबाइल कंपनियां इस दिन अरबों का वारा न्यारा करती हैं। इस दिन निर्धारित पैक भी काम नहीं करते हैं। दिन भर नेटवर्क व्यस्त रहता है। समझा जाता है कि इसी के चलते चीन में बेगुनाह युवाओं की जान गई। वैसे चीन संवृद्ध परंपराओं का देश हैं। दुनिया की कई सभ्यताओं में चीन की अपनी एक संवृद्ध सभ्यता है। वैसे चीनी नव वर्ष को चंद्रमा का नव वर्ष भी कहा जाता हैं। यहां के नववर्ष की उत्पत्ति सदियों पुरानी हैं। मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलिपिंन्स में यह बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां नव साल के दौरान व्यापक सजावट होती है। इस दौरान क्षेत्रिय रीति रिवाज की विविधताओं की झलक दिखती हैं। इस दौरान भोजन में बतख, मुर्गी और सुअर के मांस का प्रयोग होता हैं। लोगों को लाल लिफाफे में बधाईयों के साथ पैसे भी दिए जाते हैं। वैसे चीनी नववर्ष की शुरुवात नीयन नामक एक काल्पनिक राक्षस के साथ लड़ाई से माना जाता है। मान्यता है कि नीयन नए साल के पहले दिन आता था और गांववालों, मवेशियों के अलावा बच्चों के साथ फसलों को खा जाता था। जिसके प्रकोप से बचने के लिए गांव वाले साल के पहल दिन अच्छे भोजन बनाकर नीयन के लिए रखते थे। उसी से नए साल का प्रारम्भ चीन में माना जाता है। लेकिन अंग्रेजी नववर्ष का जलवा पूरे दुनिया मंे छाया है। 31 दिसंबर की आधी रात पूरी दुनिया नए साल के जश्न में डूब जाती हैं। चीन में इस दिन लाल कपड़ा घरों में बांधने की परंपरा है। मान्यता है कि नीयन लाल कपड़े देख कर भागता था। पूरी दुनिया में नववर्ष मनाने का अपना-अपना कैलेंडर है। यह सभी जगह अलग-अलग तिथियों में मनाया जाता है। लेकिन दुनिया भर मंे अंग्रेजी नववर्ष का जलवा बिखरा है। जिसके चलते चीन के शंघाई में यह हादसा हुआ। भारत में वैसे नववर्ष की शुरुवात चैत मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर, नव बसंत के नाम से जाना जाता है। बदलाव, नयी उम्मीद और नव जीवन की शुरुवात से भी इसे जोड़ा जाता है। भारत का हिंदू नव वर्ष प्रकृति के साहचर्य से जुड़ा है। मान्यता है कि इसी दिन से ब्रहमा जी ने सृष्टि की संरचना की शुरुवात की थी। वैसाखी, गुडी पडवा और दूसरे नामों से जाना जाता हैं। अंग्रेजी माह के अनुसार यह अप्रैल से माना जाता है। यह भी मान्यता है कि सतयुग का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था। वैसे अंग्रेजी माह जनवरी के प्रथम दिन का कोई वैज्ञानिक महत्व नहीं है। जबकि भारतीय वैदिक और धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र माह से रात छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। पतझड़ का आगमन होता है। बसंत ऋतु का उत्सव जीवन की नव अभिलाषाओं और उम्मीदों को लेकर आता है। यह प्राकृतिक उन्माद और मादकता का पर्व है। इसका अंग्रेजी साल से कोई ताल्लुक नहीं है। भारतीय संस्कृति और वैदिक परंपरा की जड़े बेहद गहरी, तथ्यात्मक और वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित हैं। लेकिन दुर्भाग्य आज की हमारी युवा पीढ़ी अंधी गली की तरफ मुड़ती दिखती है। यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। भास्कराचार्य ने इसी दिन पंचांग की रचना की थी।  इस माह से सारे मांगलिक कार्यों की शुरुवात होती है। राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय कैलेंडर विकसित किया गया था। भारतीय कैलेंडर में विक्रम संवत का नाम आता है। कहां जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। 21 मार्चा को दिन रात बराबर होते हैं। भारतीय पंचांग की गणना चंद्रमा और सूर्य की गति पर निर्धारित है। विक्रम संवत से भी पूर्व सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है। इसकी शुरुवात 6676 ईसा पूर्व हुई थी। अंग्रेजी वेस्ट जर्मेनिक भाषा है। इसकी उत्पत्ति एग्लो फ्रिशियन और लोअर सेक्सन बोलियों से हुई है। अंग्रेजी और उसकी परंपराओं का विस्तार संयुक्त राज्य अमेरिका में एक शक्ति के रुप में उभरने के बाद दुनिया भर में हुआ। पारसी नव वर्ष तकरीबन 3000 साल पुराना है। पारसी समुदाय में नव वर्ष नवरोज के रुप में प्रसिद्ध है। नव का अर्थ नए और रोज से तात्पर्य दिन से है। दुनिया भर के ईसाई समुदाय में नया साल पहली जनवरी को मनाया जाता है। इसके पूर्व यह तकरीबन 4000 साल पहले बेबीलोन में 21 मार्च को मनाया जाता था। लेकिन जब तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45 वें जूनियन कैलेंडर की स्थापना की उसके बाद से पूरी दुनिया में नया साल 01 जनवरी को मनाया गया। तभी से ईसाई और दूसरे धर्म के लोग भी इसे अंग्रेजी नव वर्ष के रुप में मनाने लगे। मुस्लिम धर्म में नए साल का प्रारम्भ हिजरी से होता है। हिजरी कैलेंडर का इस्तेमाल दुनिया के सभी इस्लामिक देशों के लोग करते हैं। धार्मिक उत्सव भी इसी कैलेंडर के अनुसार मनाए जाते हैं। सिंधी नव साल चैत्र शुक्ल की द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी धर्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था। सिख नव वर्ष का अपना अलग उत्साह हैं। विश्व भर में पंजाब प्रांत का वैसाखी पर्व मशहूर है। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होली के दूसरे दिन सिख समुदाय का नया साल होता है। जबकि जैन नव वर्ष भगवान महावीर स्वामी के मोक्षता तिथि से जुड़ा है। इसे जैन समुदाय के लोग वीर निर्माण संवत के नाम से जानते हैं। नव वर्ष मनाने की पीछे दुनिया के अलग-अलग धार्मित, वैदिक व लौकिक मान्यताएं हैं। हिब्रू मान्यताओं के अनुसार पूरी दुनिया को एक ईश्वरीय शक्ति ने बनाया है। दुनिया के निर्माण में सात दिन का वक्त लगा था। विश्व निर्माण की खुशी में यह दिन ग्रेगरी कैलेंडर की मान्यता के अनुसार 05 सितम्बर से 05 अक्तूबर के मध्य पड़ता है। दुनिया भर के मुल्कों में अपने रीति-रिवाज और परंपराएं मनाने के अपने-अपने तरीके हैं। लेकिन अंग्रेजी नववर्ष को मनाने की परंपरा जिस बेहूदेपन और खुलेपन की शिकार हो रही है। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और संस्करों के खिलाफ है। इस पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा। वरना आने वाले दिनों में हमारी वैदिक ंिहंदू संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत खतरे में पड़ जाएगी। हमारी युवा पीढ़ी को जागरुक करने की आवश्यकता है। उसे यह बताने की जरुरत हैं कि हमारी मान्यताओं और परंपराओं का संबंध वैदिक, धार्मिक और वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। इसका संबंध सिर्फ उन्मादी, नशीली, और हुंल्लड भरे सांगीतिक आनंद भर से नहीं है। हमंे चीन की घटना से सबक लेना चाहिए। इसके पहले हम पटना के दशहरा उत्सव की पीड़ा झेल चुके हैं।  

लेखकः स्वतंत्र पत्रकार हैं

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