.....जब अपनों पर पड़ी तो पुलिस ने लगा दी अपनी पूरी ताकत

दूसरों के घायल पर होने पर ‘‘एनसीआर’’ दर्ज करती है पुलिस
सिपाही पीटे तो 307 एवं 7 सीएलए एक्ट के जेल गये आरोपित

    जौनपुर। राजा हो या रंक, अधिकारी हो या कर्मचारी, अमीर हो या गरीब, कानून सभी के लिये बराबर होता है, क्योंकि कानून की निगाह में सभी बराबर होते हैं। ऐसा न्यायिक, प्रशासनिक एवं पुलिस विभाग द्वारा आयोजित गोष्ठी आदि में कहने के साथ इसका अक्षरशः पालन करने की बात कही जाती है लेकिन ऐसा कभी-कभी ही होता है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जैसा चेहरा होता है, वैसा पुलिस द्वारा वहां कानून लागू किया जाता है। ऐसा ही एक मामला कुछ वर्ष पहले दीवानी न्यायालय में पेशी के बाद इलाहाबाद जाते समय रास्ते में दो सिपाहियों की हत्या कर फरार नीरज सिंह के साथ हुआ था और अभी गत दिवस पूर्व नगर के मियांपुर मोहल्ले में देखने को मिला। यहां कहने का मतलब यह है कि जब कोई (बदमाश या आम आदमी) किसी की हत्या कर देता है तो पुलिस हत्यारे को गिरफ्तार कर चालान न्यायालय भेज देती है लेकिन दो सिपाहियों की हत्या कर फरार होने वाले नीरज सिंह को एक सप्ताह के अंदर 5 लाख रूपये का ईनामी बदमाश बनाकर जौनपुर-वाराणसी की सीमा पर मुठभेड़ में मार गिरा दिया गया।
    इसी तरह बीते शुक्रवार को नगर के लाइन बाजार थाना क्षेत्र मियांपुर मोहल्ले में जमीनी विवाद की जानकारी होने पर पहुंचे दो सिपाहियों को आक्रोशित परिवार वालों ने मारपीट कर जख्मी कर दिया। इतना ही नहीं, पुलिस के अनुसार उनका राइफल भी छीन लिया गया था। फिलहाल इस पर पुलिस अपनी पूरी ताकत लगाते हुये एक ही परिवार के मुखिया, उसकी पत्नी, दो पुत्रियों व दो पुत्रों के खिलाफ मारपीट, गाली-गलौज, जानलेवा हमला, सरकारी कर्मचारी पर हमला, राइफल छीनने सहित 7 सीएलए का मुकदमा दर्ज कर पति, पत्नी व दोनों पुत्रियों को गिरफ्तार कर भी लिया। इतना ही नहीं, फरार दोनों पुत्रों की इस तरह खोजबीन की जा रही है जैसे मानो वे दोनों शातिर बदमाश हैं और उन पर कई लाख रूपये का ईनाम भी घोषित है। इधर सूत्रों व जनचर्चाओं के अनुसार महिला पुलिसकर्मियों को सामने खड़ा करके पुरूष सिपाहियों ने आरोपित महिला व युवतियों को बड़ी बेरहमी से पीटा।
    अब प्रश्न यहां यह उठता है कि क्या किसी आम व्यक्ति की इस तरह की पिटाई पर पुलिस उपरोक्त धारा लगाती है? नहीं। भले ही कई लोगों द्वारा मिलकर किसी को पीट करके गम्भीर रूप से घायल कर दिया जाय। अलबत्ता एनसीआर दर्ज करके पुलिस अपने कर्तव्यों की इतिश्री जरूर कर लेती है। ऐसा क्यों किया जाता है? कानून जब सबके लिये बराबर है तो सभी लोगों पर लागू भी होना चाहिये लेकिन पुलिस ऐसा कहां करती है? यही कारण है कि थाने से लेकर कप्तान तक सुनवाई न होने पर लोग न्यायालय की शरण लेते हैं और 156 (3) के आदेश पर वही पुलिस मुकदमा दर्ज करती है। बता दें कि गत दिवस न्यायिक, प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों की हुई गोष्ठी में प्रशासनिक व पुलिस विभाग द्वारा न्यायालय से निवेदन किया गया कि 156 (3) के तहत आदेश कम किया जाय जबकि स्वयं पुलिस अपने गिरेबां में नहीं झांकती।
    कुल मिलाकर यहां यह कहना एकदम अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जब अपने पर पड़ती है तो हर कोई गम्भीर हो जाता है और सामने वाले के लिये अपनी पूरी ताकत लगा देता है लेकिन वही बात दूसरों के लिये नहीं लागू होती है। ऐसा नहीं होना चाहिये, क्योंकि कानून का पालन करने के लिये पुलिस बनी है जिसको सबके लिये एक समान होना चाहिये। पीडि़त कोई भी हो, पुलिस को अपने कर्तव्य का पालन सभी के लिये बराबर करना चाहिये।

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