पैर से लैपटॉप-स्‍मार्टफोन चलाकर पहुंचीं IIT, हादसे में गंवाए थे दोनों हाथ

 वाराणसी।  नारी को यूं ही शक्ति का स्वरूप नहीं कहा जाता। मन भले ही कोमल हो, लेकिन इरादे और हौसले हमेशा बुलंद होते हैं। काशी की एक ऐसी ही बेटी ने अपने हौसले से विकलांगता को हरा दिया है और दुनिया के लिए मिसाल कायम किया है। नाम है रानी वर्मा। एक हादसे में अपनी दोनों हाथ गंवा चुकी रानी पैरों के सहारे ही आईआईटी में जाने का कठिन मुकाम हासिल किया है। रानी पैर से जितनी तेजी से लिखती हैं, उतनी ही तेजी से लैपटॉप भी चलाती हैं। अब आईएएस बनकर गरीब विकलांग बच्‍चों को सेवा करना चाहती हैं।
रानी वर्मा काशी शहर से 20 किमी दूर दल्लीपुर गांव की रहने वाली हैं। साल 2001 में पम्‍पिंग सेट मशीन में फंसने से रानी ने अपने दोनों हाथ खो दिए थे। इसके बावजूद जिंदगी से हार नहीं मानी और पैरों के सहारे अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाया। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में फर्स्ट डिवीजन से पास करने के बाद गाजियाबाद से बीटेक मैकेनिकल की पढ़ाई पूरी की। अब मुंबई आईआईटी से गेट क्वालिफाई कर मेटलर्जी एंड मेटेरियल साइंस से एमटेक कर रही हैं। यही नहीं, रानी आईआईटी कॉलेज में अपने से जूनियर स्‍टूडेंट्स को पढ़ाती भी हैं।

रानी ने बताया कि इंसान शारीरिक नहीं, बल्‍कि मानसिक रूप से विकलांग हो जाता है। रानी ने कहा, ‘मेरे दोनों हाथ तो पहले ही मशीन में कट चुके थे, वहीं 2007 में मां की भी मौत हो गई। इसके बावजूद मैंने अपनी सपना पूरा करने के लिए आईआईटी को चुना। आईआईटी जैसी कठिन पढ़ाई करने के लिए दिन रात एक कर दिया। आईआईटी क्‍वालिफाई करने के बाद अब मैं आईएएस बनकर देश की सेवा करना चाहती हूं। इसके लिए पूरी लगन के साथ मेहनत कर रही हूं।’ बता दें कि रानी पैरों से लैपटॉप और मोबाइल पर बहुत तेजी से टाइपिंग कर लेती हैं।
रानी ने बताया कि 2001 में वो पम्पिंग सेट पर पानी भरने के लिए गई थीं। इसी दौरान वह फिसल गईं और दोनों हाथ मशीन के पट्टे में फंसकर बुरी तरह टूट गया। उन्‍होंने कहा कि हादसा होने के बाद पिताजी तुरंत बीएचयू हॉस्‍पिटल लेकर पहुंचे। एक्सपर्ट डॉक्टरों ने काफी प्रयास किया, यहां तक कि विदेश से भी डॉक्‍टर्स को बुलाया गया। काफी कोशिश करने के बाद अंत में डॉक्‍टरों ने कहा कि हाथ की नसें और हड्डिया बुरी तरह टूट चुकी हैं और हाथ काटना ही एकमात्र विकल्‍प है। इसके बाद पिताजी मुंबई, पुणे और जयपुर लेकर गए, लेकिन आखिरकार दोनों हाथ काटने पड़े।

रानी के पिता रमेश चंद्र ने बताया कि वो किसान हैं। रानी का जब हाथ कटा तो लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि एक तो लड़की ऊपर से दोनों हाथ नहीं रहे, अब यह परिवार के लिए बोझ बन चुकी है। तभी से मन में प्रण किया कि रानी को कर्ज लेकर पढ़ाऊंगा। रानी आज बोझ नहीं, बल्कि परिवार का सहारा बन चुकी है। रानी ने अपने आत्मविश्‍वास और लगन से विकलांगता जैसे अभिशाप की परिभाषा बदल कर रख दी है। रानी के भाई जय पटेल ने बताया कि दीदी आज समाज में मिसाल बन चुकी हैं। आज उनकी वजह से औरों को जीने की सिख मिल गई हैं।

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