ज्ञान के स्वरूप हैं भगवान रामः अवधूतानन्द सरस्वती

 जौनपुर। जीव से प्रेम होने पर मोह उत्पन्न होता है किन्तु वही प्रेम ईश्वर से होता है तो भक्ति उत्पन्न होती है। उक्त विचार धर्म सम्राट आनन्द विभूषित जगतगुरू श्रीमद् शंकराचार्य सर्वतोभद्र पीठाधीश्वर इन्द्रप्रस्थ भारत श्री अवधूतानन्द सरस्वती जी महराज ने अहियापुर मोड़ पर आयोजित श्री सीताराम ज्ञान महायज्ञ में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कथा सुनने से ईश्वर के प्रति भक्ति उत्पन्न न हुई तो वह पेड़ पर चढ़ने उतरने जैसा ही है। उसका कोई फल नहीं मिलता। शंकराचार्य ने कहा कि जन्म लेना, संसार में रहना और मृत्यु को प्राप्त हो जाना ये सारी क्रियाएं माया के अधीन हैं। उन्होंने ज्ञान अखण्ड एक सीता वर पंक्ति के माध्यम से मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम को ज्ञान का प्रतीक बताया। उक्त अवसर पर मानस मार्तण्ड लाल चन्द तिवारी ने हनुमान जी के चरित्र पर प्रकाश डाला। बड़े हनुमान जी के महंत बाबा रामरतन दास ने शिव और सति के प्रसंग की चर्चा की। स्वामी अनंत विभूषित श्री महामृत्युंजय जी ने राधे तू बड़भागिन कौन तपस्या कीन, तीन लोक तारन-तरन सो तेरे अधीन भक्ति रचना से श्रद्धालुओं को आनन्द विभोर कर दिया। इस दौरान कवित्री सुदामा पाण्डेय सौरभ ने भी मां सरस्वती वंदना से उपस्थित श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। इस अवसर पर बाबा केदारनाथ दास, सुधांशु, डा. वीएस उपाध्याय, गौतम सोनी, संजय अस्थाना, मुन्ना सिंह, रीता जायसवाल, तीर्थराज गुप्ता के अलावा अन्य लोग उपस्थित रहे।

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