जब डाक्टर ही विमार है तो रोगियों की हालत क्या होगी ?

जौनपुर। जिले की आबादी करीब 50 लाख एड्स रोगियों की संख्या चार हज़ार , इनके देख रेख और दवा इलाज का जिम्मा 12 लोगो के कंधो पर वह भी वगैर डॉक्टर और स्टाफ नर्स के। ऐसी परस्थित में कैसे हो सकता एड्स पर नियत्रण । जो स्टाफ इस कार्य में लगाए गए है उनकी हालत मरीजों से भी ख़राब है। उनका रोना है कि हम लोग ऐसे मरीजों का इलाज करते है जिनके अपने सगे संबंधी तिरस्कृत कर देते है इसके बाद भी केंद्र और प्रदेश सरकार की जो नीतियां उससे न मेरा वर्तमान सुरक्षित है न ही भविष्य। 


जौनपुर में कोई उद्योग धंधा न होने के कारण यहां के युवा मुंबई दिल्ली कोलकाता समेत अन्य महानगरों में जाकर रोजी रोजगार करके अपने परिवारों का भरण पोषण करते है। इन्ही में से कुछ लोग गलत संगत में आकर एड्स जैसी भयानक विमारी लेकर वापस आ रहे है इनकी नालायकियत के चलते उनकी बीबी भी एच आई वी से संक्रमित हो रही है उनसे पैदा होने वाले बच्चे माँ की पेट से ही एड्स रोगी पैदा हो रहा है। जिसका परिणाम है कि जिले में एड्स रोगियों की संख्या चार हज़ार पार् करने जा रही है। 
एड्स रोगियों की बढ़ती जनसख्या को देखते हुए जिला अस्प्ताल में सन 2002 में टेस्ट सेन्टर खोला गया एच आई वी संक्रमित रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 2011 से एक वार्ड स्थापित करके इलाज शुरू किया गया। इसमें 7 काउंसलर तीन लैब टेक्नीशियन दो अन्य पदों पर सविदा पर तैनात किया गया। ये लोग तभी से मरीजों का इलाज करते चले आ रहे है। हैरत की बात यह है कि स्टाफ की भर्ती तो कर लिया गया है लेकिन डॉक्टर और स्टाफ नर्स की नियुक्ति आज तक नहीं हो पाई है। सविदा कर्मचारियों का दर्द है कि हम लोग होली दीपावली जैसे त्योहारों में आकर मरीजों का इलाज करते है इसके बाद भी केंद्र और प्रदेश सरकार हम लोगो का कोई ख्याल नहीं कर रही है। सभी का आरोप है कि जिस तरह एड्स रोगियों के माँ बाप बीबी बेटा और समाज तिरस्कृत कर देता है उसी तरह से दोनों सरकार हम लोगो को लावारिश छोड़ दिया है। 

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