अतीत में सिमट गयी शहीदों की कुर्बानी
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जौनपुर। मछलीशहर में जंगे आजादी की लड़ाई में जान न्यौछावर करने वाले कई अमर सपूतों की शहादत भूला दी गई है । हिन्दुस्तान को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने इन बहादुर सपूतों की कुर्बानी अतीत के पन्नों तक सिमट गई है। कुछ का तो इतिहास के पन्नों में भी जगह नहीं मिली। शायद यही कारण रहा की उनके सम्मान में एक अदद स्मारक नहीं बन सका। जहाँ बना भी तो कुछ क्रांतिकारियों के नाम अंकित ही नहीं किए जा सके। 10 अगस्त 1942’ को भारत छोड़ो आन्दोलन के तहत जनपद में आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। 11 अगस्त,1942’को काँग्रेस के तमाम नेता, छात्र, नौजवान तथा दुकानदारो ने जौनपुर नगर में एक रैली निकाली। दोपहर को एक विशाल भीड़ ने कलेक्ट्रेट परिसर में प्रवेश करके तिरंगा फरहाने का प्रयास किया। भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाई। जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में आन्दोलनकारियों ने विभिन्न माध्यमों से अपने क्रोध की अभिव्यक्ति की। सुजानगंज का पुलिस स्टेशन जला दिया गया। शाहगंज, सरायख्वाजा, जलालगंज के टेलीफोन तार काट दिये गये। मड़ियाहूँ, बेलवाई, मुँगरा बादशाहपुर तथा डोभी के रेलवे स्टेशन क्षतिग्रस्त कर दिये गये। धनियामऊ को पुल तोड़ते समय पुलिस और क्रांतिकारियों में संघर्ष हुआ जिसमें सिंगरामऊ के दो विद्यार्थी ’जमींदार सिंह, रामअधार सिंह’ सहित ’राम पदारथ चैहान’ तथा ’रामनिहोर कुँहार’ पुलिस की गोली के शिकार हुए। 15 अगस्त, 1942’को जिले का प्रशासन सेनाघ्घ् को सौंप दिया गया। ’हर गोविन्दी सिंह, दीप नारायण वर्मा, मुज़्तबा हुसैन’ एवं अन्य प्रमुख नेताओं सहित ’196’ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। ’रामानन्द एवं रघुराई’ को पुलिस ने बरबरता पूर्वक पीटा अगरौरा गांव में उन्हे पेडों से लटका कर 23 अगस्त,1942 को गोली मार दी गयी और तीन दिन तक उनकी लाश लटकती रही। मछलीशहर’ में भी 19 अगस्त 1942 को ’रामदुलारे सिंह’अपने साथियों संग मछलीशहर के तहसील पर धावा बोल दिया। उन लोगों अपनी जान की परवाह किए बगैर अंग्रेजी झण्डे को उतार कर तिरंगा लहरा दिया। मछलीशहर में मौजूद अंग्रेज़ी सेना को नाराज़ जिलाधिकारी ने गोली चलाने के आदेश दिया। जिसमें रामदुलारे शहीद हो गयें और चार अन्य घायल हुए।