लुम्बिनी-दुद्धी मार्ग के बीच फंसा ऐतिहासिक नगरी जौनपुर का अस्तित्व
https://www.shirazehind.com/2016/08/blog-post_547.html
जेसीबी गरजी तो ताश के पत्ते की तरह गिर जायेंगे सैकड़ों आशियाने
सुशील वर्मा एडवोकेट
जौनपुर। नगर के पालिटेक्निक चैराहे से लेकर शकरमण्डी तक लुम्बिनी-दुद्धी मार्ग के नाम पर सड़क चैड़ीकरण के जारी सरकारी फरमान से उक्त मार्ग पर रहने वालों मंे मानो भूचाल आ गया है। इस चैड़ीकरण से किसी को फायदा या किसी को नुकसान हो या न हो लेकिन इतना जरूर है कि इस कार्य से ऐतिहासिक नगरी जौनपुर का अस्तित्व लगभग समाप्त सा हो जायेगा।
अतीत के अनुसार पालिटेक्निक से शकरमण्डी मार्ग पर कई सौ वर्षों से लोग आबाद हैं। यही कारण है कि उक्त क्षेत्र में जितने भी मकान हैं, उनमें 90 प्रतिशत तो 8 से 10 दशक पहले के बने हैं। अधिकतर मकान चूने, गारे, लखौरी ईंट से बने हैं। उसी रास्ते में कई सौ वर्ष पुराना शाही पुल के अलावा कई मंदिर, मस्जिद सहित पुरातत्व विभाग की सम्पत्ति भी है। जौनपुर शहर जो ऐतिहासिक नगरी के नाम से जाना जाता है, की पहचान अद्वितीय है। ऐसे में यदि जेसीबी गरजी तो अधिकांश मकान तो ताश के पत्ते की तरह भरभराकर गिर जायेंगे। उक्त मार्ग में रहने वाले काफी लोग तो ऐसे हैं जो रोज कमाकर खाने वाले हैं। यदि उनका मकान गिराया गया तो वह पुनः मकान खड़ा नहीं कर पायेंगे और ऐसे में खुले आसमान के नीचे जीवन बिताने को मजबूर हो जायेंगे।
आधुनिकता पर गौर किया जाय तो आज आवागमन की एक अच्छी व्यवस्था के लिये सरकार द्वारा ओवरब्रिज, बाईपास का निर्माण कराया जा रहा है। ऐसे में लुम्बिनी-दुद्धी मार्ग का रूप देकर उक्त मार्ग का चैड़ीकरण कराना न्याय संगत नहीं प्रतीत होता है। शहर में कुछेक स्थान ऐसे थे जहां लोग सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किये थे। उसको तोड़ा गया तो वह उचित माना जा रहा है। पूर्व में कई बार पालिटेक्निक चैराहे से शकरमण्डी तक अतिक्रमण हटाओ अभियान चला। ऐसे में उक्त मार्ग पर रहने वाले अभी सुधर नहीं पाये कि अब उससे भी करारी चोट का सरकारी एलान कर दिया गया जो ‘कोढ़ में खाज’ वाली बात है।
अभी हाल में ही मुम्बई-गोवा मार्ग पर स्थित सावित्री नदी पर बना पुराना पुल जो ढाई सौ वर्षों पुराना था, बढ़े जलस्तर के बहाव में टूटकर बह गया। जौनपुर का शाही पुल तो उससे भी काफी पुराना है जो जर्जर भी है। जनहित को ध्यान में रखते हुये लुम्बिनी-दुद्धी मार्ग को बाईपास से जोड़ा जाना आवश्यक है, अन्यथा नगर की ऐतिहासिकता एवं अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। फिलहाल उक्त मार्ग के चैड़ीकरण के नाम पर जारी सरकारी फरमान को लेकर जनचर्चा है कि क्या इस क्षेत्र में पड़ने वाले ऐतिहासिक शाही पुल, पुरातत्व विभाग की सम्पत्ति, धार्मिक स्थल भी तोड़े जायेंगे?
सुशील वर्मा एडवोकेट
जौनपुर। नगर के पालिटेक्निक चैराहे से लेकर शकरमण्डी तक लुम्बिनी-दुद्धी मार्ग के नाम पर सड़क चैड़ीकरण के जारी सरकारी फरमान से उक्त मार्ग पर रहने वालों मंे मानो भूचाल आ गया है। इस चैड़ीकरण से किसी को फायदा या किसी को नुकसान हो या न हो लेकिन इतना जरूर है कि इस कार्य से ऐतिहासिक नगरी जौनपुर का अस्तित्व लगभग समाप्त सा हो जायेगा।
अतीत के अनुसार पालिटेक्निक से शकरमण्डी मार्ग पर कई सौ वर्षों से लोग आबाद हैं। यही कारण है कि उक्त क्षेत्र में जितने भी मकान हैं, उनमें 90 प्रतिशत तो 8 से 10 दशक पहले के बने हैं। अधिकतर मकान चूने, गारे, लखौरी ईंट से बने हैं। उसी रास्ते में कई सौ वर्ष पुराना शाही पुल के अलावा कई मंदिर, मस्जिद सहित पुरातत्व विभाग की सम्पत्ति भी है। जौनपुर शहर जो ऐतिहासिक नगरी के नाम से जाना जाता है, की पहचान अद्वितीय है। ऐसे में यदि जेसीबी गरजी तो अधिकांश मकान तो ताश के पत्ते की तरह भरभराकर गिर जायेंगे। उक्त मार्ग में रहने वाले काफी लोग तो ऐसे हैं जो रोज कमाकर खाने वाले हैं। यदि उनका मकान गिराया गया तो वह पुनः मकान खड़ा नहीं कर पायेंगे और ऐसे में खुले आसमान के नीचे जीवन बिताने को मजबूर हो जायेंगे।
आधुनिकता पर गौर किया जाय तो आज आवागमन की एक अच्छी व्यवस्था के लिये सरकार द्वारा ओवरब्रिज, बाईपास का निर्माण कराया जा रहा है। ऐसे में लुम्बिनी-दुद्धी मार्ग का रूप देकर उक्त मार्ग का चैड़ीकरण कराना न्याय संगत नहीं प्रतीत होता है। शहर में कुछेक स्थान ऐसे थे जहां लोग सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किये थे। उसको तोड़ा गया तो वह उचित माना जा रहा है। पूर्व में कई बार पालिटेक्निक चैराहे से शकरमण्डी तक अतिक्रमण हटाओ अभियान चला। ऐसे में उक्त मार्ग पर रहने वाले अभी सुधर नहीं पाये कि अब उससे भी करारी चोट का सरकारी एलान कर दिया गया जो ‘कोढ़ में खाज’ वाली बात है।
अभी हाल में ही मुम्बई-गोवा मार्ग पर स्थित सावित्री नदी पर बना पुराना पुल जो ढाई सौ वर्षों पुराना था, बढ़े जलस्तर के बहाव में टूटकर बह गया। जौनपुर का शाही पुल तो उससे भी काफी पुराना है जो जर्जर भी है। जनहित को ध्यान में रखते हुये लुम्बिनी-दुद्धी मार्ग को बाईपास से जोड़ा जाना आवश्यक है, अन्यथा नगर की ऐतिहासिकता एवं अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। फिलहाल उक्त मार्ग के चैड़ीकरण के नाम पर जारी सरकारी फरमान को लेकर जनचर्चा है कि क्या इस क्षेत्र में पड़ने वाले ऐतिहासिक शाही पुल, पुरातत्व विभाग की सम्पत्ति, धार्मिक स्थल भी तोड़े जायेंगे?