अनेक स्थानों पर जलायी गयी होलिका

जौनपुर। जिले में अनेक स्थानों पर होलिका विधि विधान से जलायी गयी। सर्व प्रथम रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले आदि को किसी साफ और स्वच्छ जगह गोबर से लीपकर उसमें एक चैकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर पवित्र गंगा जल से पहले उस स्थान को शुद्ध कर लेना चाहिए । ध्यान रखे की पूजन करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में हो । सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में सही मुहर्त पर अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी जाती है । ध्यान रहे यह समय भद्रा के बाद का ही हो । अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक है । इसके पश्चात नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित किया जाता है। इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें। इसके पश्चात् हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। विधि पंचोपचार की हो तो सबसे अच्छी है । पूजा में सप्तधान्य की पूजा की जाती है जो की गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर । होलिका के समय नयी फसले आने लग जाती है अतरू इन्हे भी पूजन में विशेष स्थान दिया जाता है । होलिका की लपटों से इसे सेक कर घर के सदस्य खाते है और धन धन और समृधि की विनती की जाती है । होलिका के चारो तरफ तीन या सात परिक्रमा करने के बाद  साथ में कच्चे सूत को लपेटा जाता है।

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