कंबाइन मशीनों ने छीना पशुओं का निवाला

जौनपुर। बढ़ते मशीनीकरण से पशुओं के निवाला का संकट हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। किसान अपने खून पसीने की कमाई को शुभ मुहूर्त देख कर घरों में रखते थे। पशुओं का निवाला भी घरों में रखने के लिए एक विशेष घर बनता था। उसे बखारी घर कहा जाता था, जिसमें अनाज के साथ भूसा भी रखा जाता था। भूसे की महंगाई का ही असर है कि बाजारों में दूध 40-45 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। गेहूं की फसल पककर तैयार होने के अंतिम चरण में है। बावजूद इसके भूसे के रेट में गिरावट नहीं हुई है। आज भी बाजारों में भूसे का भाव एक हजार कुन्तल है। जानकारों की मानें तो रिपर युक्त कंबाइन का प्रयोग करने से काफी हद तक भूसे का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इस पर अमल करने के लिए नियम हर वर्ष बनते हैं बाद में नतीजा सिफर हो जाता है।
कहा जाता है कि किसानों का सोना उनका अनाज होता है तो पशुओं का पेट भूसा से ही भरा जाता था। पहले कम संसाधन होने के बावजूद किसान भूसा व अनाज की पूरी सुरक्षा करते थे। गेहूं की कटाई के बाद किसान घर के एक कमरे में भूसा रखकर उसमें बोरे में भरकर अनाज रखता था। कंबाइन के कारण भूसे की किल्लत ने उनके सामने एक नई समस्या खड़ी कर दी है। अब उन्हें पर्याप्त भूसा न मिलने से अनाज को स्टील के बने ड्रम में रखना शुरू कर दिया। पहले बखार में अनाज रखने पर किसानों को कीटनाशक का प्रयोग नहीं करना पड़ता था। अब ड्रम में अनाज रखने पर कीटनाशक का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे उनका खर्च भी बढ़ता है। जिले के बदलापुर के प्रगतिशील किसान स्वप्निल सिंह, राम अवतार, विद्यासागर आदि का कहना है कि पहले गेहूं के फसल की कटाई हाथ से होती थी और थ्रेसर से मड़ाई होने से भूसा पर्याप्त मात्रा में मिलता था।

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