समाज के लिये प्रकृति की उपहार हैं नारीः गार्गी सिंह

जौनपुर। नारी जीवन समाज के लिये प्रकृति का उपहार है। ममता, करुणा, दया, त्याग की प्रतिमूर्ति हमारी मां, बहनें, पत्नी, बेटी इस पृथ्वी पर मानव समाज के संतुलन बनाये रखने के लिये वरदान स्वरूप हैं। आज आधुनिक भारत में महिलाएं स्वावलम्बी हैं परन्तु अधिकार, सम्मान, सुरक्षा के दृष्टि से दूसरे पर निर्भर हैं। नारी प्रत्येक रूप में पूजनीय हैं। फिर भी आज समाज में नारी सशक्तिकरण की बात कहनी पड़ती है। 21वीं शताब्दी के भारत में जहां विकसित बड़े शहरों की महिलाएं शिक्षित आत्मनिर्भर अपने सभी पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक दायित्वों का स्वतंत्र निर्वहन कर रही हैं एवं स्वतंत्रता के हनन होने पर स्वनिर्णय ले आवाज उठाने, विरोध करने की शक्ति का बोध रखती हैं, वहीं दूसरी तरफ छोटे शहरों, ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की आवाज दबा दी जाती है। महिलाओं के दायित्वों, नैतिक मूल्यों एवं कर्तव्यों को रूढ़िवादी सोच के साथ जोड़ कर देते हैं और विरोधी धारणाएं विकसित कर लेते हैं। प्राचीन समय में ही भारतीय धर्म ग्रन्थों में नारी को भिन्न रूपों में अद्भुत, अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण हमारे समाज में विराजमान एक अदृश्य शक्ति प्रतीक बताया गया है। जन्म से मां, किशोरावस्था में बहन, प्रौढ़ावस्था में पत्नी के साथ सांस्कारिक व्यवहार का अनुकरण करना सीख कर ही व्यक्ति एक स्वस्थ समाज के निर्माण में भाग लेता है। नारी के सम्मान से ही राष्ट्र का विकास सम्भव है। व्यक्ति में नैतिक, चारित्रिक मूल्य एवं अपने देश की संस्कृति, संस्कार का बोध ममता की छाया में परवरिश से ही विकसित होते हैं। जिस समाज में महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा, शिक्षा, विकास को गम्भीरता से नहीं लिया गया, उसका पतन दूर नहीं है। आज विकृत व विकृत विचार के परिणामस्वरूप निर्भया काण्ड जैसे घिनौने निन्दनीय अपराध ने तो देश की प्रत्येक मां-बहनों को झकझोर कर रख दिया। हद तो तब हो जाती है जब सभी के सामने प्रस्तुत सरकारी आंकड़े 2015 के दौरान पूरे देश में रेप के 32077 मामले दर्ज किये गये जिनमें 17 सौ मामले गैंगरेप के थे। यह आंकड़े उन मामलों पर आधारित हैं जो पुलिस तक पहुंचे। आज भारत मां की तकलीफ वेदना की आवाज उनकी गोद उनकी संस्कृति समाज में पले पुत्रों तक नहीं पहुंच पा रही है जिसका विकृत परिणाम आये दिन देखने को मिलता रहता है। 2001 के जनगणना के अनुसार भारत में स्त्री-पुरूष अनुपात 933 महिलाएं प्रति हजार पुरूष थी। मई 2000 में गठित राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2026 तक रूत्री-पुरूष अनुपात 930ः1000 होने की संभावना है। नशा, असामाजिकता, अनैतिकता आदि वैयक्तिक दुर्गुणों से लोग दो‘चार होते रहते हैं जिससे गरीबी, बेरोजगारी, घरेलू हिंसा, दहेज, अपशब्द, महिला शोषण, महिला व भ्रूण हत्या के फलस्वरूप समाज में असंतुलन की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। अभी देर नहीं हुई है। हमारे समाज में आने वाली पीढ़ियों को योग्य बनाने के लिये एक स्वस्थ समाज को आगे आकर प्रत्येक महिला को जागरूक करना होगा। 
महिलाओं के लिये बने कानूनों, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005ः आर्थिक शोषण, मारपीट, यौन शोषण, अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल पर कार्यवाही।
राष्ट्रीय महिला आयोग 1990 अधिनियमः दहेज, बलात्कार आदि से सहायता कानून।
प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994ः इसका उल्लंघन करने पर 10-15 हजार रूपये जुर्माना तथा 3-5 साल तक की सजा।
दहेज निषेध अधिनियम 1961 समयानुकूल पुनः संशोधन 1986 बनाया गया एवं हमारे भारतीय संविधान अनुच्छेदों, महिला कानूनों की विस्तृत जानकारी प्रत्येक समाज तक पहुंचानी होगी। प्रत्येक नारी एक मां, बेटी, बहू, पत्नी, सास बनती है और हर रूप में वह पुरूष समाज को ममता, करुणा, दया एवं त्याग द्वारा गर्भावस्था से ही सींच करके एक वृक्ष बनाती है। उस वृक्ष समान पुरूष से लाभ होगा या हानि यह तो सिर्फ नारी के किसी विशेष रूप के साथ बीते समय में अधिगम किये जा सके। नैतिक मूल्यों, संस्कारों, व्यवहारों पर बहुत हद तक निर्भर करता है। इस बात से ममता को सर्वोपरि सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। यह चिन्तन का विषय है कि किसी नारी का व्यवहार उसके समाज द्वारा दिये गये सम्मान, स्वीकृति व शक्ति की स्वतंत्रता पर निर्भर है। इस ब्रह्माण्ड में स्त्री जाति को विशिष्ट गुणों से परिपूर्ण कर पृथ्वी पर व्याप्त सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिये हर रूप में दक्ष बनाया है। इस विषय पर चर्चा से निश्चित होता है कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को बचाये रखने के लिये हमें भारतीय नारी को भारतीय सभ्यता व संस्कृति से जोड़े रखना होगा। नारी के सम्मान, सुरक्षा भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। नारी के साथ किया गया व्यवहार समाज व राष्ट्र को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर उन्नति विकास का केन्द्र बिन्दु बनता है। अतः नारी को नारीत्व शीलगुणों के साथ निश्छल-निर्विरोध, शीतल, स्वतंत्र निर्मल विचारों के साथ समाज के विकास के लिए अविरल आगे बढ़ने दें।
‘नफरतों की इस दुनिया में ममता की छांव मां हूं मैं
रुसवाइयों को गले लगाती इसी मिट्टी की श्रृंगार हूं मैं।
बेबसी-बेचारगी से तन्हा-तन्हा तन्हाई में मां हूं मैं
अराजकता की धूप में जलती वेदना की पुकार हूं मैं।
अपराधों से छलती रहती पल-पल मरती मां हूं मैं
सभी दुःखों को दिल में दबाती सभी कुछ सहती हर बार हूं मैं’।।
गार्गी सिंह
असिस्टेन्ट प्रोफेसर मनोविज्ञान
तिलकधारी महाविद्यालय जौनपुर।

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