बाल विवाह रोकना अकेले पुलिस द्वारा सम्भव नहीं है : S P
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जौनपुर। बाल विवाह एक सामाजिक कुप्रथा है, जिसका
निवारण अकेले पुलिस द्वारा सम्भव नहीं है। इसके लिए सरकार के अन्य
विभागों, पंचायतों, नागर समाज संगठनों एवं मीडिया को मिलकर काम करने की
जरूरत है। आज की यह कार्यशाला इसी दिशा की ओर एक पहली कड़ी है। उक्त विचार
पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार पाण्डेय ने व्यक्त किए। राष्ट्रीय बाल अधिकार
संरक्षण आयोग के निर्देश पर डॉ. शम्भुनाथ सिंह रिसर्च फाउण्डेशन द्वारा
उत्तर प्रदेश पुलिस महिला सम्मान प्रकोष्ठ एवं क्राई के सहयोग से पुलिस
लाइन, सभागार में आयोजित कार्यशाला के मुख्य अतिथि पद से विचार व्यक्त करते
हुए पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि चूॅकि बाल विवाह के साथ
कुछ लोगों की संवेदनाएॅ एवं भावनाएॅ जु़ड़ी रहती है अतः इसके निवारण हेतु
सिर्फ बल प्रयोग ही नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाने की आवश्यकता है
तभी हम समाज को बाल विवाह के विरूद्ध एक सकारात्मक संदेश दे सकंेगे।
उन्होने जनपद में हाल ही मे रोके गये दो बाल विवाहों का उदाहरण देते हुए
बताया कि पुलिस को रेस्क्यू के साथ-साथ पुर्नवास पर भी उतना ही ध्यान देने
की आवश्यकता है जिसके लिए अन्य विभागों को भी साथ में काम करने की आवश्यकता
है।
प्रारम्भ
में अतिथियों का स्वागत एवं कार्यशाला के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए
फाउण्डेशन की कार्यक्रम निदेशिका डॉ. श्रीमती रोली सिंह ने कहा कि एक बाल
विवाह सिर्फ एक बच्चा, एक परिवार, एक समुदाय ही नहीं बल्कि पूरे समाज पर
अपना कुप्रभाव छोड़ता है। बाल विवाह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर हस्तक्षेप कठिन
तो है किन्तु असम्भव नहीं। समाज में बच्चों की सुरक्षा की दृष्टि से ही
नहीं बल्कि सामाजिक विघटन से बचाने के लिए इस पर संवेदनशीलता से कार्य करने
की जरूरत है। आगे बाल विवाह प्रतिषेध कानून-2006 के प्राविधानों पर चर्चा
करते उन्होंने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की एवं 21 वर्ष से कम उम्र
के लड़के का विवाह करना व करवाना या इसमें प्रत्यक्ष व अप्र्रत्यक्ष रूप से
शामिल होना एक संज्ञेय अपराध है जिसमें दो वर्ष तक की कारावास एवं 1 लाख
रू. तक का जुर्माना अलग-अलग अथवा एक साथ लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि
बाल विवाह की सूचना मिलते ही थाना स्तर पर तैनात बाल कल्याण पुलिस
अधिकारी, चाइल्ड लाइन, या अन्य किसी भी सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता अथवा
कोई भी आम नागरिक, जिला बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी से सम्पर्क कर विवाह
रूकवाने हेतु निषेधाज्ञा जारी करवा सकते है अथवा बाल विवाह हो जाने की
स्थिति में ऐसे विवाह को शून्य या अकृत करवाने की कार्यवाही कर सकते है।
उन्होनेें बताया कि इस एक्ट के अनुसार पीड़िता को क्षतिपूर्ति अथवा गुजारा
भत्ता पाने का भी प्राविधान है। साथ ही उन्होंनेे बाल विवाह रोकथाम में
अर्न्तविभागीय जवाबदेही के बारे में बात करते हुए महिला एवं बाल विकास,
पंचायतीराज, प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा, सी.डब्ल्यू.सी. जिला बाल संरक्षण
इकाई एवं जिला प्रशासन की भूमिका पर विस्तार पूर्वक चर्चा की और
प्रतिभागियों की शंकाओं का समाधान किया।
प्रतिभागियों
को सम्बोधित करते हुए पुलिस अधीक्षक ग्रामीण संजय राय ने कहा कि सामाजिक
समस्याओं का निदान सिर्फ कानून से नहीं हो सकता है इसके लिए समाज के सभी
वर्गो को समवेत प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने जिले के समस्त थानों
से आए बाल कल्याण पुलिस अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि वे इस
प्रशिक्षण के उपरान्त अपने थानाध्यक्षों/थाना प्रभारियों तथा विशेष तौर पर
हेड मोहर्रिर/दीवान को प्राप्त प्रशिक्षण से अवश्य अवगत कराए ताकि वे अपने
क्षेत्र में इसके लिए जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन सहित आवश्यक विधिक पहल
भी कर सकें। उन्होंने आयोजक संस्था से अपील कि की वे नियमित रूप से ऐसी
कार्यशालाओं का आयोजन करें ताकि पुलिस कर्मियों का क्षमतावर्धन किया जा
सकें।
कार्यक्रम
में क्राई के सहयोग से प्राप्त जिले के समस्त बाल हितग्राहियों के फोन न.
की उपलब्धता और उसका विमोचन माननीय पुलिस अधीक्षक द्वारा किया गया।
कार्यशाला
का समापन करते हुए बाल कल्याण समिति के पूर्व अध्यक्ष संजय उपाध्याय ने
कहा कि लगन में हर दिन अनगिनत बाल विवाह होते दिखते है, लोग मौन रहते है
जिसकी वजह से हर थाने पर बाल विवाह रिपोर्टिंग शून्य है।
इस अवसर पर जौनपुर जिले के एस.जे.पी.यू., पॉक्सो व ए.एच.टी.यू. के नोडल
अधिकारी, समस्त थानो के प्रभारी निरीक्षकों, व बाल कल्याण पुलिस अधिकारियों
सहित बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री अनील कुमार यादव,, किशोर न्याय
बोर्ड., डी.सी.पी.यू के संरक्षण अधिकारी श्री चन्दन राय तथा चाइल्डलाइन के
सदस्य उपस्थित थे।