पित्र विसर्जन पर किया तर्पण , दिया दान

 जौनपुर। पित्र विसर्जन के अवसर पर मृतक पूर्वजों को विधिविधान से बुधवार से श्राद्ध किया गया। नगर के आदि गंगा गोमती के पावन तट हनुमान घाट, गोपीघाट, सूरज घाट, बलुआघाट पर सवेरे से ही लोगों की भीड़ लगी रही और ब्राहमणों द्वारा बताये गये विधि विधान से उन्हे संतृप्त किया गया और दान दिया गया। लोगों ने अपने बाल कटाकर इस क्रिया को कराया। विसर्जन का शाब्दिक अर्थ हैं पूर्ण होना, समापन या अंत। इसी प्रकार पितृविसर्जन मूलतः पितृपक्ष की समापन बेला हैं। मान्यता है कि पितृपक्ष में पितृ धरा पर उतरते हैं और पितृविसर्जन यानि श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को पितृ हमसे विदा हो जाते हैं। कहते हैं कि जो अपने अस्तित्व को सम्मान देकर पितृ को प्रतीक स्वरूप अन्न जल प्रदान करता है उससे प्रसन्न होकर पितृ सहर्ष शुभाशिष प्रदान कर अपने लोक में लौट जाते हैं। पर वैज्ञानिक और कुछ आध्यात्मिक अवधारणाएं इस मान्यता की पुष्टि नहीं करती। कर्मकाण्ड इसे दुर्भाग्य को नष्ट करने वाले कर्म के रूप में भी देखता। अपने परिजनों और पूर्वजों के देहत्याग की तिथि ज्ञात न होने पर या ज्ञात तिथि पर किसी अपरिहार्य कारणों से श्राद्ध न हो पाने, अमावस्या यानि पितृविसर्जन के दिन श्राद्ध का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त होता है। इसके अलावा अकाल मृत्यु से ग्रसित व्यक्तियों का श्राद्ध भी इसी दिन होता है। यूं तो पितृ से सामान्य आशय पैतृक यानि पिता या उसके परिवार से माना जाता है। लेकिन यदि कोई अपने नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहता है, तो यह क्रिया अमावस्या यानि पितृविसर्जन के दिन की जा सकती है।

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