अच्छे स्कूलों में गरीब बच्चों के दाखिले की चाह नहीं
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जौनपुर। गरीब बच्चों के लिए सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों में 25 फीसद सीटें आरक्षित हैं। इसके बावजूद जिले में इस साल जो स्थिति सामने आई है, उसे देखकर ही यह लगता है कि गरीब तबके के अभिभावकों की अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजने की चाह नहीं है। प्रदेश सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत जहां 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था लागू की है। इसी के तहत जहां परिषदीय स्कूलों में ज्यादा से ज्यादा नामांकन कराए जाने पर जोर दिया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर अच्छे प्राइवेट स्कूलों में अधिनियम के तहत 25 फीसद सीटों पर दाखिला दिलाकर उनका खर्चा सरकार द्वारा वहन करने की व्यवस्था भी की है। वर्ष 2011 के बाद जिले की स्थिति यह रही कि योजना शुरू ही नहीं हो सकी। 2017 में विभाग ने गरीब बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला कराने के लिए काफी प्रचार प्रसार किया। तब कहीं जाकर कुछ अभिभावकों में सक्रियता दिखाई दी। लगभग तीन महीने तक विभाग द्वारा प्रयास किए जाने के बाद सिर्फ 15 बच्चों का एडमीशन उनके मनचाहे स्कूल में कराया जा सका। लगभग डेढ़ महीने ऑनलाइन आवेदन शुरू हुए हो चुका है, लेकिन आवेदनों की रफ्तार बहुत धीमी है। कारण यही है कि अभी भी अभिभावकों द्वारा रुचि नहीं ली जा रही। अभी तक विभाग को सिर्फ चन्द आवेदन मिले, जिनमें कई आवेदन निरस्त होने के बाद एडमीशन की कतार में सिर्फ दो बच्चे ही रह गए हैं। हालांकि अब ऑनलाइन आवेदन की तिथि 18 मई तय कर दी गई है। उधर विभाग ने हर ब्लॉक में मैनुअल आवेदन प्रक्रिया शुरू करने पर जोर देते हुए खंड शिक्षाधिकारियों से भी अधिक से अधिक बच्चों को लाभ दिलाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि अभी 30 जून तक प्रक्रिया पूरी होनी है पर नहीं लगता कि इस बार भी लाभार्थियों का शतक पूरा होगा। स्कूल संचालक रहते हैं परेशान प्राइवेट स्कूलों में ज्यादातर एडमीशन अप्रैल के महीने में ही पूरे हो जाते हैं। आरक्षित सीटों पर जून तक स्कूलों को कोई ब्योरा विभाग द्वारा नहीं दिया जाता। ऐसी स्थिति में स्कूल संचालकों की परेशानी रिक्त सीटों को लेकर रहती है। स्कूल संचालक बाद में अभिभावकों को आरक्षित सीटों पर एडमीशन देने में आनाकानी करते हैं। जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं कि सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों को 25 फीसद सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित रखने का नियम है। काफी प्रयास के बाद भी लाभ के लिए आवेदन इस बार भी कम आए हैं। प्रयास किया जा रहा है कि मैनुअल तौर पर ज्यादा से ज्यादा बच्चों को लाभ दिलाया जा सके।