कार्तिक पूर्णिमा पर लगायी डुबकी, दिया दान
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जौनपुर। हिंदू धर्म में कार्तिक महीना त्योहार के लिहाज से काफी अहम माना जाता है. इस महीने में काफी त्योहार एक के बाद एक मनाए जाते हैं, वहीं हिंदू धर्म में पूर्णिमा का भी अपना एक अलग महत्व है, इसके साथ ही कार्तिक पूर्णिमा भी काफी मायने रखती है । कार्तिक पूर्णिमा का पर्व षुक्रवार को मनाया गया। इस अवसर पर त्रिलोचन महादेव तथा सूरज घाट पर विषाल मेंले का आयोजन किया गया। आस्थावान लोगों ने सवेरे ही गोमती के विभिन्न घाटों पर स्नान कर दान पुण्य किया। त्रिलोचन महादेव तथा सूरज घाट के मेले में अनंेक प्रकार के सामानों की दुकानें लगी थी और लोगों ने खरीददारी किया। खेती किसानी एवं सभी प्रकार के सामानों की दुकानों पर ग्रामीणों की भारी भीड़ रही । गुड़ की जलेबी, लाई, गट्टा आदि की जमकर खरीददारी हो रही थी। इसके वजह से वाराणसी पर मार्ग पर वाहनों की भारी भीड़ और जाम से लोगों को परेषानियों का सामना करना पड़ा। मान्यता है कि इस दिन भक्त सभी देवी देवताओं को एक साथ प्रसन्न कर सकते हैं, इस विशेष मौके पर विधि-विधान से पूजा अर्चना करना न केवल पवित्र माना जाता है बल्कि इससे समृद्धि भी आती है. इसके साथ ही इससे सभी कष्ट दूर हो सकते हैं. इस दिन पूजा करने से कुंडली, धन और शनि दोनों के ही दोष दूर हो जाते हैं। मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था और संसार को राक्षस के भय से मुक्त करवाया था. इस कारण इसे त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. साथ इस वध के कारण भगवान शिव के त्रिपुरारी कहा जाने लगा. वहीं इस दिन पूजा करने के लिए बताया जाता है कि अपने हाथ-पांव धोकर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान किया जाता है. इसेक अलावा इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से भी जाना जाता है। ज्ञात हो कि कार्तिक पूर्णिमा को जहां सिख समुदाय के लोग प्रकाश उत्सव मनाते हैं वहीं हिंदू मतावलंबी के शास्त्रों में इस दिन को देव दीपावली कहा जाता है। इस दिन दीपदान किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से निरोगी काया और सुख संपत्ति की प्राप्त होती है। इस दिन भगवान श्रीहरि का मत्स्य अवतार हुआ था इसलिए इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने का भी विशेष महत्व है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अंगिरा और आदित्य ने इस महा पुनीत दिन का महत्व स्वीकार किया है इसलिए इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि करने के लिए शास्त्रों में बताया गया है। शास्त्र में कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णमा को संध्याकाल में दीप दान करने से पुनर्जन्म का कष्ट नहीं होता है , शास्त्रों में ऐसा हो वर्णित है कि इस पर्व पर गरीबों को दान देना चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान दान आदि को महत्वपूर्ण और वरिष्ठ माना जाता है। इस दिन दान करने से पुष्कर तीर्थ का फल प्राप्त होता है। केला खजूर नारियल अनार संतरा बैंगन कुमार आदि फलों का दान उत्तम माना जाता है। इस दिन अपनी बहन, भांजे, बुआ और गरीबों को दान करने से भी पुण्य फल प्राप्त होता है। साथ ही मित्र, कुलीन व्यक्ति से पीड़ित और आशा से आए अतिथि को दान देने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश खुद कार्तिक पूर्णिमा को स्वरूप बदल कर स्नान करने आते हैं इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। सायं काल देवी मंदिरों में, चैराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों और तुलसी के पौधों के पास दीपक प्रज्वलित किया जाना चाहिए। ऊंचाई पर दीपक अथवा लालटेन जलाकर की प्रकाश किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को छह कृतिकाओं का पूजन कर रात्रि में दान करने पर शिव द्वारा विशेष फल प्राप्त होता है गाय, गजराज, रथ, घोड़ा, आदि का दान से संपत्ति मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध भी किया था। त्रिपुरा असुर ने एक लाख वर्ष तक तीर्थराज प्रयाग में भारी तपस्या की थी और उसके आत्मसंयम से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, और उससे वरदान मांगने को कहा। इस पर त्रिपुरासुर ने मनुष्य और देवताओं के हाथों ना मारे जाने का आर्शिवाद मांग लिया। तब देवताओं ने उसे कैलाश पर्वत पर विराजमान शिव जी के साथ युद्ध करने को कहा और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। अंत में कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव जी ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से त्रिपुरासुर का वध कर दिया।

