..जहां मौत का फरिश्ता इजाजत ले, वो है मोहम्मद का घर

जौनपुर। जिले में हजरत मोहम्मद मुस्तफा स.अ. की वफात व उनके बड़े नवासे इमाम हसन अ.स. की शहादत के मौके पर शहर व ग्रामीण इलाकों में 28 सफर का जुलूस निकाला गया जो अपने क़दीम रास्तो से होता हुआ सदर इमामबाड़ा में जा कर समाप्त हुआ सोमवार की सुबह इमामबाड़ा मीर सखावत हुसैन पोस्तीखाने में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष फैसल हसन तबरेज़ की मरहुमा वालदा की फूल की मजलिस को खेताब करते हुए मौलाना महफुजूल हसन खां ने कहा कि इस्लाम जो आज जिंदा है वो अहलेबैत की कुर्बानी की देन है जो अहलेबैत से मोहब्बत करता है वो इस्लाम से मोहब्बत करता है। इस्लाम ने हमेशा कुर्बानी देना सिखाया है ना कि किसी की जान लेना। ऐसे में हम सबको नबी की सीरत पर अमल करते हुए अहलेबैत को मानते हुए उनके किरदार को अपनाना चाहिए।इस मौके पर सैकड़ों अजादार मौजूद थे।अंजुमन जाफरी के नेतृत्व में नगर के मखदूम शाह अढ़न मोहल्ला स्थित इमाम बारगाह हसनैन खां मरहूम से निकाला गया। इस दौरान ताजिया, शबीहे ताबूत व अलम मुबारक के साथ नगर की सभी अंजुमनों ने नौहा-मातम किया। जुलूस अपने कदीमी रास्ते से होता हुआ कोतवाली चौराहे पहुंचा जहां मातमी दस्तों ने जंजीर और कमा का मातम किया। इसके बाद जुलूस बड़ी मस्जिद, पुरानी बाजार होता हुआ बेगमगंज स्थित सदर इमाम बारगाह पहुंचा, जहां शबीहे ताबूत, आलम ठंडा किया गया और ताजिये को सुपुर्दे खाक किया गया।इसके पूर्व मजलिस की शुरुआत सोजख्वानी शबाब हैदर व उनके हमनवां ने किया मजलिस को डा. सैय्यद कमर अब्बास ने खिताब करते हुए कहाकि इस कायनात के रसूल हजरत मोहम्मद मुस्तफा स.अ.व उनके नवासे इमाम हसन व हुसैन ने अपनी पूरी जिंदगी इस्लाम को फैलाने में कुर्बान कर दिया। मोहम्मद का मर्तबा इसी से समझा जा सकता है कि मौत का वह फरिश्ता जो जब चाहे जहां चाहे जाकर इंसान की रुह कब्ज कर ले लेकिन वह बार-बार कुंडी खटखटाता रहा और इजाजत मांगता रहा। जब रसूल ने अपनी बेटी फातेमा स.अ. से कहा कि बेटी यह मौत का फरिश्ता है और मेरा आखिरी वक्त है इसे इजाजत दे दो और फातेमा स.अ. ने इजाजत दिया तब वह दाखिल हुआ लेकिन उसी मोहम्मद के नवासों को दुनिया ने चैन से रहने नहीं दिया। बड़े नवासे इमाम हसन को जब छह बार जहर देकर भी नहीं मारा जा सका तो सातवीं बार ऐसा जहर लाया गया जिसकी एक बूंद दुनिया के सभी समुंदरों के जीवों को मारने के लिए काफी था वह जहर इमाम के पानी में उनकी एक पत्नी द्वारा मिला दिया गया जिसे पीने के बाद उन्हें खून की उल्टियां होने लगी और शहीद हो गये। शहादत के बाद जब जनाजा जन्नतुल बकी में दफ्न के लिए ले जाया गया तो लोगों ने जनाजे पर तीरों की बारिश कर दी। 70 तीर इमाम के जनाने पर लगे। यह दुनिया का पहला ऐसा जनाजा था जो कब्रिास्तान जाने के बाद पुन: घर वापस आया। मजलिस के बाद शबीहे अलम, ताबूत व ताजिया उठाया गया। जिसके हमराह अंजुमन जाफ़री ने नौहा और मातम शुरु किया। कोतवाली तिराहे पर पहुंचा जहां जंजीर और कमा का मातम किया गया। यहाँ अंजुमन जुल्फेकारियाँ व कौसरियाँ जुलूस को मल्हनी पड़ाव,पुरानी बाजार से होता हुआ सदर इमाम बारगाह बेगमगंज पहुंचा जहां नौहा और मातम के बाद तुर्बत व ताबूत को सुपुर्द ए खाक किया गया। इस दौरान शहर की सभी अंजुमनें मौजूद थी।जुलूस का संचालन तहसीन शाहिद ने किया व आभार मकबूल अहमद खॉन, मुम्ताज अहमद खॉन,सकलैन अहमद खॉन ने प्रकट किया।

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