कपड़े की गुणवत्ता की जांच के नाम पर वसूली

जौनपुर । सिलाई से भी कम धनराशि का होना है भुगतान, उसमें भी गुणवत्ता के नाम पर चूना लगाया जा रहा है। यह हाल है सर्व शिक्षा अभियान के तहत छात्रों को वितरित किए जाने वाले ड्रेस का है। गुणवत्ता परखने के नाम पर कागज पर टास्क फोर्स गठित है वहीं अधिकारियों के नाम पर विद्यालयों से जमकर वसूली की जा रही है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत परिषदीय, कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों व माध्यमिक विद्यालय के जूनियर हाईस्कूल के बच्चों को सर्व शिक्षा अभियान के तहत दो-दो ड्रेस मुफ्त वितरित किया जाता है। इसके लिए चार सौ रुपये की धनराशि निर्धारित की गई है। नियम के अनुसार विद्यालयों में दर्जी जाकर बच्चों का नाप लेगा और उसी के अनुसार फिट ड्रेस सिलना है। ड्रेस की गुणवत्ता के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में टास्क फोर्स टीम बनानी है। जिसमें मुख्य विकास अधिकारी, डायट के प्राचार्य, मुख्य कोषाधिकारी सदस्य तथा जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सचिव होते हैं। आपूर्ति करने वाली संस्था को केवल 75 फीसद धनराशि का ही भुगतान किया जाएगा। बाकी 25 फीसद धनराशि वितरण के एक माह बाद जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर दिया जाना। इस अवधि में प्रधानाचार्यो की जिम्मेदारी होगी कि वह इस बात का पता लगा लें कि धुलाई के बाद कपड़े खराब तो नहीं हुए। सिलाई, कपड़े की गुणवत्ता, वितरण आदि की रिपोर्ट भी उन्हें देनी होती है। विभागीय सूत्रों के अनुसार टास्क फोर्स टीम ने गुणवत्ता की जांच नहीं किया। ब्लाक स्तर पर खंड शिक्षा अधिकारियों का हवाला देते हुए कुछ शिक्षक और कर्मचारी स्कूलों में जाकर प्रति छात्र पचास रुपये से लेकर 100 रुपये वसूल रहे हैं। आना-कानी करने वाले शिक्षकों को कार्रवाई की धौंस दी जा रही है।

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