जानिए क्यों मनाया जाता है महाशिवरात्रि पर्व

जौनपुर। महाशिवरात्रि की तैयारियां जोरों पर है, यह पर्व शुक्रवार को मनाया जायेगा। पर्व की पूर्व संध्या पर जहां पूजन और व्रत सामग्री खरीदने के लिए भीड़ उमड़ी  रही वहीं शिवालयों की साफ सफाई और सजाने तथा सवंारने का काम भी तीब्र गति से चलता रहा। बाजारों में वेलपत्र, धतूरा एवं अन्य पूजन सामग्री खरीदने वालों की होड़ लगी रही।
ज्ञात हो कि महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग  जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है  के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है ।  ,भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का महत्व ईशान संहिता के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन ज्यितिर्लिंग के रूप में शिव प्रकट हुए थे। इसलिए इस पर्व को महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के व्रत से जीवन में पाप और भाग का नाश होता है। इसलिए इस व्रत को व्रतों का राजा कहा गया है। त्रि से संबधित कई पौराणिक कथायें है। कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव श्नीलकंठश् के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। जैसे सुबह  हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है। इस अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है। जलाभिषेक रू जल से और दुग्धाभिषेक रू दूध से। बहुत जल्दी सुबह-सुबह भगवान शिव के मंदिरों पर भक्तों, जवान और बूढ़ों का ताँता लग जाता है वे सभी पारंपरिक शिवलिंग पूजा करने के लिए आते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं। भक्त सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं   पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं, भक्त शिवलिंग स्नान करने के लिए मंदिर में पानी का बर्तन ले जाते हैं महिलाओं और पुरुषों दोनों सूर्य, विष्णु और शिव की प्रार्थना करते हैं मंदिरों में घंटी और  शंकर जी की जय ध्वनि गूंजती है। भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं और फिर शिवलिंग पर पानी या दूध भी डालते हैं।
फोटो 01-महादेव शिवशंकर का साधननरत चित्र।

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