कोरोना की भेंट चढ़ गये शादी विवाह से जुड़े धन्धे

जौनपुर । सम्प्रति कोरोना वायरस की त्रासदी का दंश विश्व के कई देश झेल रहे हैं। सरकारी और निजी उद्योगों पर भी गहरा आघात लगा है। इस वायरस ने शादी विवाह वधू प्रवेश तिलक आदि सभी मांगलिक कार्यक्रमों पर अपनी काली छाया का ग्रहण लगा दिया है। बैंड बाजा रथ, डीजे, कैटरिंग समेत इससे जुड़े सभी लोगों का धंधा चैपट हो गया। सुइथा कला के डा0प्रदीप दुबे ने बताया कि पंचांग के अनुसार वैशाख कृष्ण पक्ष षष्ठी 13 अप्रैल को खरमास समाप्त होने के उपरांत तिलक,शादी, विवाह,वधू प्रवेश आदि का मुहूर्त प्रारंभ हो गया। पुनः 31 मई से 11 जून तक शुक्र अस्त होने से कारण  मांगलिक कार्यों पर कुछ दिन के लिए विराम लगा है।शुक्रोदय के पश्चात 12 जून से 01 जुलाई, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की हरिशयनी एकादशी तक हीं  विवाह आदि मांगलिक कार्यों के मुहूर्त है। पुनः 25 नवम्बर को  कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी के पश्चात मांगलिक कार्यों का मुहूर्त है,जो 16 दिसम्बर को खरमास आरम्भ होने के साथ हीं समाप्त हो जाएगा।कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार द्वारा 03 मई तक पूर्ण बंदी की घोषणा की गई है,आगे भी संशय की स्थिति होने से अप्रैल,मई व जून तक के अधिकतर वैवाहिक कार्यक्रम दिसम्बर तक के लिए रोक दिए गए हैं।जहां शादियों के रूकने से  धर्मशाला,मैरिज हाल, होटल आदि वीरान हो गए हैं वहीं इसी के भरोसे बैठे टेन्ट,शामियाना, बैंड बाजा,डीजे,लाइट, रथ, फूल वाले सभी परेशान हैं। शादी विवाह से जुड़े धंधों की असली कमाई इन्हीं तीन महीनों में होती है जिससे वे अपने परिवार का भरण पोषण करने के साथ हीं वर्ष भर की आमदनी का आधार मानकर अपनी आगे की योजना बनाते हैं। बैंकों से कर्ज लेकर इस धंधे में जुड़े लोग भी इसी के सहारे  बैंकों का कर्ज भी भरते हैं। बैंकों के कर्ज अदा करने के लिए कमाई का जरिया खत्म हो गया है परिणाम स्वरुप इससे जुड़े धंधे वाले बैंक के कर्ज से भी दब गए हैं।इन परिवारों में भुखमरी की हालत पैदा हो गई है। वहीं शादियों के टलने से दूल्हे राजा के सभी अरमान भी अधूरे रह गए हैं। जब शहनाई नहीं बजी तो ऐसे में समय बिताने के लिए दूल्हे राजा मोबाइल फोन के सहारे समय काट रहे हैं। टेन्ट हाउस के धंधे से जुड़े ईशापुर निवासी निवासी विजय कुमार सिंह   का कहना है कि तीन महीने के वैवाहिक कार्यक्रमो में लगभग तीन लाख की कमाई हो जाती,जिससे पारिवारिक खर्च के अलावां  धन्धे के लिए बैंक कर्ज की अदायगी भी करनी थी। लाकडाउन से सब धन्धा  चैपट हो गया है। लोगों को दी जा रही राहत के क्रम में सरकार को इन लोगों के  विषय में भी सोचना चाहिए। फूलों की सजावट करने वाले रमेश माली कहते हैं फूल खिलकर डालियों में हीं मुरझा रहे हैं,कोई खरीददार नहीं है।लगन के तीन महीने में लगभग एक लाख की कमाई हो जाती थी,लेकिन अब तो भगवान ही मालिक है। पता नहीं कब हालत सुधरेंगें।सरकार को हम लोगों के लिए भी कुछ सोचना चाहिए।

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