यह कैसा जश्न !

विकास तिवारी 
 कल रात्रि नौ बजे नौ मिनट के लिए हमारी भारत सरकार के मुखिया द्वारा किये गये आवाह्न पर दीया व अन्य प्रकाश प्रदीप्ति करने वाले यंत्रो को जलाने का समय था। हम हमारे जानने वाले और भारत की जनता जनार्दन भी सरकार के इस अनुरोध पर मनन, मंथन के बाद अपने अपने निर्णय के साथ रात 9 बजे सामने आई। जो कुछ दिखायी पड़ा उसे देखने और आत्म मनन करने के बाद एक बार तो सोचा की कुछ नही लिखूंगा और ना ही बोलूगां। सुबह उठा तो बोध हुआ की आज भगवान महावीर स्वामी की जयंती है भगवान महावीर द्वारा दिये गये उपदेशों का अल्प अध्ययन के बाद लगा की नही हमें कुछ तो कल के प्रदर्शन पर लिखना ही चाहिए ।कल हमने देखा की दीया व अन्य प्रकाश प्रदीप्ति करने वाले यंत्र जलाने के साथ-साथ कुछ लोग सड़क पर पटाखे फोड़ रहे हैं ।लोग विपदा का प्रहसन बना दिये है। इतने बड़े मुश्किल वक्त में ख़ाली हाथ लड़ रहे कोरोना योद्धाओं का यह तो उपहास है इसे कृतज्ञता का दीपक जलाना कदापि नही कहा जा सकता मैं पटाखे न चलाने के लिए अपने आप से चिल्लाता रहा ।लेकिन चारों दिशाओं से आ रही आतिशबाजी के शोर ने मेरे मन को घृणा से भर दिया।इस तरह बर्बादी के उत्सव का आयोजन व प्रदर्शन देखना मेरे लिए बेहद त्रासद अनुभव था । इसके पहले कोरोना के योद्धाओं के प्रति एकजुटता के प्रदर्शन के लिए तालियां और थालियां बजाने के आह्वान का भी ऐसा ही अश्लील हश्र हुआ था।हमारा समाज ऐसे भी अमानुषों और जाहिलों से भरा हुआ है सोचकर बहुत दुख होता है । वही एक विधायक द्वारा ऐसे वक्त में मसाल जलूस निकालना व जिलाध्यक्ष बलामपुर द्वारा हवाई फायरिंग करके उत्सव मनाने की खबर दुख को और बढ़ा देती है ।लेकिन वही दूसरे पहलू पर भी सोच रहा हूँ कि बिल्कुल सबको अपनी स्वतंत्रता है,आस्था भाव हैं जिसको जैसे भी आत्मशक्ति मिले उसे करना चाहिए ।मैने भी भगवान से देश के कल्याण के लिए प्रार्थना किया ।मुझे लगता है कि आज हमें शिक्षा, अस्पताल,विज्ञान और दवाई की जरूरत है और हम मृत्यु के साहिल पर खड़े है। ऐसे में हमें मूर्खताओं का प्रदर्शन करने के लिए इक्कठा होकर इस तरह बर्बादी का जश्न नही मनाना चाहिए

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