जिले के मंत्री गिरीश के विभाग में करोड़ों का हेराफेरी!

 

जौनपुर। नगर विकास राज्य मंत्री गिरीश चंद्र यादव के अपने ही जनपद में एसटीपी प्लॉट में करोड़ों के कामों में हेराफेरी का सनसनीखेज़ आरोप सामने आया है। दो सौ करोड़ से अधिक की इस परियोजना में जिस तरह मानको को ताक पर रखकर ठेकों में बंदरबांट हुई, उससे साफ हो गया है कि यह पूरी परियोजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी। मजे की बात यह है कि हाईकोर्ट की जनहित याचिका में दाखिल शपथपत्र के विपरीत यहां काम हो रहा है। जिस अभियंता ने रोक की कोशिश की उसको रातों रात हटवा दिया गया। इस काम में विवाद के बाद पूर्व सांसद धनंजय सिंह को जेल भेज दिया गया। क्योंकि काम कर रही एजेंसी ने उन पर धमकाने का आरोप लगाया था जबकि बाद में उसने शपथ पत्र देकर इन आरोपों से इंकार किया है। ज़ाहिर है इस घोटाले से नगर विकास मंत्री की साख पर सवाल खड़े हो गये है।

जौनपुर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का मामला नए विवादों से जुड़ता जा रहा है। करोड़ो की लागत बनने वाले इस प्लांट की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ निर्माण कार्य में मानकों को अनदेखा करने पर प्रोजेक्ट मैनेजर के नाम पर उत्तर प्रदेश जल निगम के अधिशासी अभियंता ने एक पत्र लिखा है। पत्र में करोड़ों की हेराफेरी की बात सामने आई है। मामले में गहनता से जांच की जाए तो भ्रष्टाचार की परतें खुल सकती हैं। सूत्रों के अनुसार जल निगम के अधिकारियों द्वारा प्रभावशाली व्यक्तियों से साठगांठ है। इसी में प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल का नाम पहली बार 10 मई 2020 को सामने आया था जब उन्होंने एक पूर्व सांसद पर आरोप लगाया था। तब पूर्व सांसद धनंजय ने स्थानीय जनप्रतिनिधि गिरीश यादव पर आरोप लगाया था कि 3 साल के अंदर 100 करोड़ से ऊपर की संपत्ति कैसे अर्जित की गई। इसकी जांच लोकायुक्त से कराई जाए। एसटीपी मामले में भी उन्होंने खराब गुणवत्ता के सामान का प्रयोग और इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार पर बात करते हुए स्थानीय मंत्री पर आरोप लगाए है।


क्या लिखा है पत्र में?

सोशल मीडिया पर प्रोजेक्ट मैनेजर के नाम लिखा गया एक पत्र वायरल है। यह पत्र नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत जौनपुर नगर पालिका परिषद क्षेत्र में एसटीपी के निर्माण के संबंध में 14 मई को लिखा गया है। पत्र के अनुसार टेंडर में दिए गए मानकों को ध्यान में रखकर निर्माण कार्य नहीं हो रहा है। ऐसे में एसटीपी निर्माण के मामले में यह पत्र निर्णायक साबित हो सकता है।


नमामि गंगे के तहत एक साल पहले मंजूर हुई थी परियोजना


गंगा की प्रमुख सहायक नदी गोमती को स्वच्छ बनाने के लिए केंद्र सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत शहर में सीवर लाइन बिछाने और ट्रीटमेंट प्लांट की करीब 205 करोड़ की परियोजना एक वर्ष पूर्व मंजूर हुई थी। अक्टूबर से इस पर काम भी शुरू हुआ था। मगर जिम्मेदारी की उदासीनता से काम नहीं बढ़ पाया। परियोजना के डीपीआर में तमाम खामियां अफसरों की अदूरदर्शिता को जाहिर कर रही है, बल्कि भ्रष्टïाचार की ओर इशारा कर रही है। पालिका के रिकॉर्ड पर गौर करें तो शहर में वर्तमान में ही 33 एमएलडी क्षमता की जलापूर्ति की जा रही है। जबकि 8.9 एमएलडी का प्रोजेक्ट भी जल्द पूरा होने वाला है। सीपीएचईईओ के मानको के तहत कुल जलापूर्ति का 80 प्रतिशत हिस्सा सीवरेज के रूप में निकलता है। इस लिहाज से शहर में निकलने वाला सीवरेज की मात्रा 24-25 एमएलडी है। भविष्य में 8.9 एमएलडी का प्लांट क्रियाशील होने पर सीवरेज 30 एमएलडी के ही करीब पहुंच जाएगा।


सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 30 एमएलडी है, जो मौजूदा समय में निकल रहे सीवरेज से काफी अधिक है। लॉकडाउन के कारण कुछ समय के लिए काम प्रभावित हुआ था। अब निर्धारित समय से काम पूरा करने का हरसंभव प्रयास जारी है।

सुनील कुमार, एक्सईएन जलनिगम

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