विकास के युग में, चौपाल के साथ रेडियो का अस्तित्व भी खतरे में

 

जौनपुर।  आधुनिक समय में, रेडियो अतीत की बात हो गई है। किसी जमाने में रेडियो गांव वालों के लिए जहां अचरज का सामान होता था वही गांव की चौपालों पर रेडियो सुनने वालों की भीड़ लगी रहती थी पुरानी फिल्मों में, गांव के चौपालों को फिल्माया जाता था, गांव के चौपाल पर मुखिया बड़ी रेडियो के साथ पंचायत किया करते थे लेकिन विकास के युग में, चौपाल के साथ रेडियो का अस्तित्व भी खतरे में है।
 देश की आजादी के बाद सरकार द्वारा गाँव प्रधानों को मुफ्त रेडियो उपलब्ध कराया जाता था ताकि रेडियो पर प्रोग्राम सुनकर खेती बाड़ी में किसान उन्नत कर सके इसके अलावा विश्व को जोड़ने का रेडियो संसाधन हुआ करता था वही श्रोताओं के लिए रेडियो पर प्रसारित होने वाले प्रोग्राम जिनमें फिल्मी गाने के अलावा अन्य प्रोग्राम ग्रामीणों व शहरी इलाकों में मनोरंजन का सामान हुआ करते थे, रेडियो सुनने वालों के का कहना है कि स्वर्गीय राजीव गांधी की सरकार बनने से पहले रेडियो बजाने और सुनने की फीस जमा करनी होती थी तो वही अपनी पहचान रखने वाला रेडियो दुल्हन की विदाई के समय दहेज में भी दिया जाता था इतनी ऊंचाइयों को छूने वाला रेडियो जहां दुनिया के लिए एक अचरज का सामान हुआ करता था अब नई नस्ल के लिए अतीत का हिस्सा बनता जा रहा है Google के अनुसार, रेडियो का आविष्कार १९१८ में न्यूयॉर्क में किया गया था, लेकिन कुछ दिनों बाद इसे बंद कर दिया गया था, लेकिन १९२० में पहली बार रेडियो स्टेशन स्थापित कर प्रसारकिया गया था। भारत में आजादी के बाद 1936 मेंऑल इंडिया रेडियो और आकाश ने वाणी का प्रसारण शुरू किया। लोगों के अनुसार, देश के स्वतंत्र होने के बाद,१९५२मे सरकार के द्वारा गाँव प्रधानौ को ट्रांजिस्टर दिया जाता था ताकि ग्रामीण खेती किसानी का खतमसे कर गांव की चौपालों पर जमा हो और उन्हें खेती किसानी की मालूमात कर प्रोत्साहन किया जा सके उस समय, बिजली का कोई संसाधन नहीं था। ट्रांजिस्टर १२बोल्ट की बैटरी द्वारा संचालित किया जाता था। उस समय वाराणसी से सीधा प्रसारण खेती किसानी का शाम 6:00 बजे होता था ग्रामीण गांव की चौपाल पर जमा होकर प्रोग्राम को सुनते थे 1965 में विकास हुआ तो घरों तक ट्रांजिस्टर पहुंचने लगा शाहगंज तहसील क्षेत्र के कुछ गांव के लोग सिंगापुर, मलेशिया से कमा कर लौटते थे तो अपने साथ ६ बैंड का ट्रांजिस्टर फिलिप्स हालैंड लाया करते थे घर पर सुनने के बाद जब वापस जाने लगते थे तो 500 से लेकर ₹600 तक में बेच कर चले जाया करते थे और वही उनका वापस जाने का किराया निकल जाता था जानकार बताते हैं कि पुरानी तकनीक से बने ट्रांजिस्टर को चालू होने में तकरीबन 5 मिनट का समय लगता था ट्रांजिस्टर के प्रोग्राम में। ऑल इंडिया रेडियो, बीबीसी, विविध भारती, रेडियो सेलोन जो बाद में श्रीलंका रेडियो मैं तब्दील हो गया था19७०के दशक में अमीन सयानी के द्वारा प्रसारित किया जाने वाला विनाका गीत माला उस समय के कामयाबी के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिया था इसके अलावा बीबीसी पर प्रसारित होने वाला प्रोग्राम सैरबीन श्रीलंका पर गीत माला के अलावा ऑल इंडिया पर फरमाइशी गानों का प्रोग्राम प्रसारित होता था इसके अलावा 15 पैसे के पोस्ट कार्ड के द्वारा अपने पसंद के गाने सुनने की फरमाइश करने के लिए श्रोता चिट्ठी भेजा करते थे पुराने लोगों के मुताबिक रेडियो पर फरमाइशी गाना सुनने के लिए पोस्टकार्ड भेजने के बाद बेसब्री से इंतजार हुआ करता था 19८0 के दशक में, देश में विकास हुआ तो ट्रांजिस्टर की जगह छोटी रेडियो आने लगी तब तक रेडियो ने क्रिकेट के श्रोताओं के दिलों में अपनी जगह बना लिया था लेकिन जब एशियाड खेल शुरू हुआ तो टेलीविजन का दौर आया और रेडियो के प्रसारण में कमी आने लगी आम लोगों के मुताबिक 1984 तक रेडियो का लाइसेंस हुआ करता था घरों में सुनने के लिए ₹15 एक वर्ष का और दुकानों पर बजाने के लिए ₹25 सालाना फीस अदा करनी होती थी जिसकी जांच के लिए डाक विभाग से इंस्पेक्टर दौरा किया करते थे स्वर्गीय राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद उस व्यवस्था को खत्म कर दिया और फिर घरों में रेडियो की जगह टेलीविजन ने अपनी जगह बना लिया रेडियो के बारे में मनेक्षा ग्राम सभा के हाजी अब्दुल कुददूस बताते हैं किमैं बीते ५० वर्ष से लगातार बीबीसी प्रसारण और अन्य समाचारों को सुबह और शाम को जरूर सुनता हूं, उनका मानना है कि विशेष रूप से बीबीसी का समाचार विश्वसनीय होता है समाचार सुनने से देश विदेश की खबरें मिल जाया करती है। रेडियो का चलन खत्म होने पर वर्तमान समय में रेडियो खराब होने पर थोड़ी परेशानी तो होती है लेकिन तलाश करने पर कारीगर मिल जाया करते । लखमपुर गांव के के ७० वर्षीय इसरार अहमद ने कहा कि रेडियो सूनने में उनकी रुचि उनकी युवावस्था में शुरू हुई और वह अभी तक भी जीवित हैं। अतीत को याद करते हुए उन्होंने कहा कि जब वह लगभग आठ साल के थे तब से रेडियो सुन रहे थे। उन्होंने अपने युवावस्था के दिनों को याद करते हुए कहा कि वह इस कदर शौकीन थे कि जब वह बैलों के साथ जुताई कर करता था तो हल में रूडियो लटका दिया करता था और फिर रेडियो सुना करता था बताते हैं कि 50 साल पहले 6 बैंड का पैनासोनिक रेडियो ₹500 में खरीदा था जिससे आज भी प्रोग्राम सुनता हूं विकास के दौर में टेलीविजन को नकारते हुए कहा रेडियो खास तौर पर बीबीसी की खबर विश्वसनीयबन होती है मनेछा गांव के मोहम्मद अरशद जो 40 साल से रेडियो और टेलीविजन की रिपेयरिंग और नई रेडियो टेलीविजन का व्यवसाय करते हैं उन्होंने रेडियो के जमाने को याद करते हुए बताया कि कंपनी के नाम के एतबार से मार्केट में डिमांड हुआ करती थी उस समय रेडियो के रिपेयरिंग का काम बहुत था तो रेडियो नई रेडियो भी खूब बिका करती थी रेडियो की मार्केट को टेलीविजन ने और टेलीविजन की मार्केट को मोबाइल में खत्म कर दिया है

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