साहित्य, संस्कार और समाज का एक स्तंभ चुपचाप चला गया

जौनपुर। हिन्दी-उर्दू साहित्य की साझा विरासत को अपनी लेखनी, वाणी और विचारों से जीवन देने वाले वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार और समाजसेवी अजय कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। 84 वर्ष की आयु में गुरुवार की रात उनका निधन हो गया। अंतिम सांस तक साहित्यिक और सामाजिक सक्रियता से जुड़े रहे इस कर्मयोगी के न रहने की खबर से जनपद ही नहीं, सम्पूर्ण साहित्यिक जगत शोक में डूब गया।

उनके निधन की खबर ने कवियों, शायरों, लेखकों, रंगकर्मियों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के हृदय को जैसे विचलित कर दिया। अजय कुमार का जीवन अपने आप में एक प्रेरक अध्याय था—जहाँ साहित्य सिर्फ लेखन नहीं, बल्कि जन सरोकारों का माध्यम था।

साहित्य के सच्चे साधक

अजय कुमार हिन्दी भवन संचालन समिति के अध्यक्ष पद पर रहते हुए हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के बीच सेतु बने रहे। उन्होंने अपने जीवन को सिर्फ लेखन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि रंगमंच, कला, संगीत, सामाजिक चेतना और वैचारिक आंदोलनों में भी सजग भागीदारी निभाई। वे ‘समय’ अख़बार के संपादक रहे, और अनेक पुस्तकों का लेखन एवं संपादन किया। निधन से मात्र पाँच दिन पूर्व उन्होंने अपनी अंतिम पुस्तक "राग जौनपुरी" पूरी कर उसे प्रकाशन के लिए भेजा।

अंतिम दान—नेत्र और देह

अपनी इच्छानुसार, उन्होंने नेत्रदान और देहदान किया—जिनसे उनका जीवन मृत्यु के बाद भी प्रकाश और ज्ञान का स्रोत बना रहेगा। उनका पार्थिव शरीर बीएचयू मेडिकल कॉलेज को सुपुर्द किया गया, जो स्वयं एक शिक्षाशास्त्री की अंतिम शिक्षादान की पराकाष्ठा थी।

शिक्षक, विचारक, क्रांतिकारी

राजा श्रीकृष्ण दत्त इंटर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य रहे अजय कुमार सख्त अनुशासनप्रिय शिक्षक के रूप में सम्मानित रहे। वे सिर्फ शिक्षण तक सीमित नहीं थे—धुर वामपंथी विचारधारा के वाहक के रूप में जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। इसी मंच का राष्ट्रीय अधिवेशन 12 जुलाई से रांची में आयोजित हो रहा है, जिसे अब अजय कुमार की स्मृति को समर्पित किया गया है।

अंतिम सलामी—एक विचार को

आजमगढ़ से आए कामरेड जयप्रकाश नारायण, जौनपुर के कामरेड जयप्रकाश सिंह, माकपा के पूर्व जिला सचिव किरण सिंह रघुवंशी, पत्रकार अरविन्द उपाध्याय, डॉ. प्रतीक मिश्र, लाल प्रताप राही आदि ने उनके पार्थिव शरीर पर लाल झंडा अर्पित कर अंतिम सलामी दी।

परिवार और परंपरा

अजय कुमार, स्वतंत्रता सेनानी और "समय" व हिन्दी भवन के संस्थापक स्व. रामेश्वर प्रसाद सिंह के पुत्र थे। उनके परिवार की रचनात्मक विरासत आज भी जीवित है—पत्नी आशा सिंह हिन्दी भवन की सक्रिय संचालनकर्ता हैं और पुत्र अपल सिंह अंतरराष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ वीडियो जर्नलिस्ट हैं।

विदाई में उमड़ा साहित्यिक समाज

अंतिम यात्रा उनके निवास से निकल कर हिन्दी भवन पहुंची, जहाँ साहित्यकारों, कवियों, शायरों, रंगकर्मियों, पत्रकारों, परिजनों और नगर के प्रमुख नागरिकों ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की। यह केवल एक देह की विदाई नहीं थी—यह एक विचार, एक युग, एक आंदोलन की विदाई थी।

अब अजय कुमार नहीं हैं, लेकिन उनके शब्द, विचार और मूल्य अनगिनत हृदयों में धड़कते रहेंगे। यह जाना नहीं, अमरता की ओर एक मौन प्रस्थान है।

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  1. अजय जी के जाने से मैने अपने साहित्यिक राजनीतिक गुरु खो दिया है, अजय कुमार का जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है, ताउम्र याद आते रहोगे कामरेड अजय कुमार जी, कांतिकारी जौहर
    Lal Prakash Rahi

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