आत्महत्या सामाजिक समस्या है, रोकथाम सामूहिक जिम्मेदारी : प्रो. हरिओम त्रिपाठी

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर विशेष

जौनपुर। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के समाजशास्त्र विभाग के संयोजक एवं टी.डी.पी.जी कॉलेज के विभागाध्यक्ष प्रो. हरिओम त्रिपाठी ने कहा कि आत्महत्या को केवल व्यक्तिगत विफलता या मानसिक कमजोरी के रूप में देखना गलत है। यह एक गहरी सामाजिक समस्या है, जिसकी रोकथाम के लिए पूरे समाज को जिम्मेदारी निभानी होगी।

उन्होंने बताया कि बीते एक माह में जौनपुर जनपद में ही 20 लोगों ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया, जो बेहद गंभीर और चिंताजनक स्थिति है। इस पर सिर्फ शोक जताना पर्याप्त नहीं है, बल्कि ठोस पहल की आवश्यकता है।

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि “आत्महत्या की घटनाएं यह संकेत देती हैं कि हमारे सामाजिक ताने-बाने में संवाद और संवेदनशीलता की कमी बढ़ रही है। अवसाद, बेरोजगारी, पारिवारिक तनाव और सामाजिक दबाव जैसी परिस्थितियां व्यक्ति को तोड़ देती हैं। अगर समय रहते परिवार, मित्र और समाज सहयोग करें तो ऐसे कदम रोके जा सकते हैं।” 

 उन्होंने आगे कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों को जागरूक करना होगा। आत्महत्या से जुड़े कलंक और सामाजिक हिचक को दूर करना आवश्यक है। परिवार और समाज में संवाद की परंपरा को मजबूत करना होगा। जरूरत पड़ने पर तुरंत पेशेवर सहायता लेनी चाहिए। 

प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि इस वर्ष की थीम “एक्शन के जरिए आशा जगाना” हमें यह सिखाती है कि केवल चर्चा और संवेदना काफी नहीं है, बल्कि हर स्तर पर ठोस कार्यवाही जरूरी है। “हम सब मिलकर छोटे-छोटे प्रयास करें तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।” उन्होंने अपील की कि समाज, मीडिया, शिक्षा संस्थान और प्रशासन को मिलकर आत्महत्या रोकथाम की दिशा में सामूहिक अभियान चलाना चाहिए।

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