मछलीशहर टाइम्स : एक छोटे कस्बे की बड़ी पत्रकारिता की कहानी
53 वर्ष पहले मछलीशहर से निकलता था साप्ताहिक अखबार, जिसने गाँव-शहर की आवाज़ को दी थी नई दिशा
मछलीशहर। आज से लगभग 53 वर्ष पूर्व जब अखबार छापना गाँव-कस्बों के लिए किसी सपने जैसा था, तब मछलीशहर से एक साप्ताहिक हिंदी अखबार निकलता था — “मछलीशहर टाइम्स”। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में कस्बे के मोहल्ला पूरा नंद लाल निवासी डॉ. अंजनी नंदन वर्मा ने की थी।
1947 में कायस्थ परिवार में जन्मे डॉ. वर्मा के पिता स्व. आर्य नंदन वर्मा शिक्षित और संस्कृतप्रेमी व्यक्ति थे। प्रारंभिक शिक्षा मछलीशहर इंटर कॉलेज से प्राप्त करने के बाद उन्होंने काशी विद्यापीठ, वाराणसी से एम.ए. (संस्कृत) किया। इसके पश्चात मेरठ से होम्योपैथी डिप्लोमा हासिल किया और कुछ समय तक सरकारी अध्यापक के रूप में सेवाएं भी दीं।
घर से शुरू हुई प्रेस, और जन्म लिया ‘मछलीशहर टाइम्स’ ने
लगभग 1969 के आसपास पत्रकारिता के प्रति रुचि बढ़ने पर उन्होंने अपने घर में ही “कांति प्रिंटिंग प्रेस” की स्थापना की। यहीं से “मछलीशहर टाइम्स” नामक साप्ताहिक अखबार और एक मासिक पत्रिका छापना शुरू किया। यह अखबार हर सोमवार को प्रकाशित होता था, जिसकी लगभग 400 प्रतियां पूरे जिले में वितरित की जाती थीं।
इस अखबार में स्थानीय लोगों के लेख, कहानियाँ और सामाजिक मुद्दों पर विचार प्रमुखता से प्रकाशित होते थे। इसकी कीमत मात्र 20 पैसे थी। उस समय यह केवल एक अखबार नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन जैसा था, जिसने कस्बे के लोगों को लिखने, सोचने और अभिव्यक्त होने का मंच दिया।
ज्ञान और विनम्रता के प्रतीक
डॉ. वर्मा संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं के गहन ज्ञाता थे। एक बार जेएनयू (दिल्ली) के एक छात्र ने अपनी थीसिस में उनसे सहायता ली, जिससे वहाँ के प्रोफेसर भी प्रभावित हुए और उनसे मिलने की इच्छा जताई।
पत्रकारिता के बाद उन्होंने कुछ समय खेती की ओर रुख किया, लेकिन शिक्षा से उनका जुड़ाव बना रहा। वर्ष 2007 में उन्होंने पब्लिक चिल्ड्रेन स्कूल, मछलीशहर में अध्यापक के रूप में सेवा प्रारंभ की। उनकी भाषा-ज्ञान की गहराई के कारण विद्यार्थी ही नहीं, अध्यापक भी उनसे सलाह लेने आते थे।
एक युग का अंत, पर प्रेरणा कायम
वर्ष 2013 में डॉ. अंजनी नंदन वर्मा का निधन हो गया। वे अपने पीछे शिक्षा, पत्रकारिता और समाजसेवा की ऐसी विरासत छोड़ गए, जो आज भी प्रेरणा देती है।
भले ही आज “मछलीशहर टाइम्स” का प्रकाशन नहीं होता, लेकिन उस समय की यह पहल साबित करती है कि सीमित संसाधनों के बावजूद भी बड़े सपने देखे जा सकते हैं। डॉ. वर्मा ने छोटे कस्बे को बड़ी सोच दी — यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
SOURCE:- This article is based on historical references from the District Gazette of Jaunpur (1986) and additional insights obtained from the family of Dr. Anjani Nandan Verma.*
*✍️ शाज़िल फ़राज़*

