कोचिंग सेंटरों की मनमानी! यूनिफॉर्म-बैग अनिवार्य कर अभिभावकों की जेब काटने का नया तरीका

 कोचिंग संस्थान द्वारा गणवेश और बैग अनिवार्य करने से बढ़ते आर्थिक बोझ के विरोध में लेख

आज शिक्षा एक अधिकार होने के साथ-साथ परिवारों की सबसे बड़ी जरूरत भी है। बच्चे बेहतर भविष्य की आशा में कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में कुछ कोचिंग संस्थानों द्वारा अपनी पहचान या ‘ब्रांडिंग’ के नाम पर गणवेश (यूनिफॉर्म) और बैग अनिवार्य करना छात्रों एवं अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक दबाव डालने वाला कदम साबित हो रहा है।

पहले ही कोचिंग की फीस, यात्रा, किताबें और अन्य शैक्षणिक सामग्रियों का खर्च परिवारों की आय का बड़ा हिस्सा ले लेता है। ऐसे में अनिवार्य गणवेश और संस्थान-विशेष बैग खरीदने का नियम उन अभिभावकों के लिए और भी कठिनाई खड़ी करता है, जिनकी आर्थिक स्थिति सामान्य या कमजोर है। बहुत से परिवार पहले ही महंगाई से जूझ रहे हैं, ऊपर से कोचिंग-अनिवार्य वस्त्र खरीदने का भार उनकी परेशानियों को दोगुना कर देता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि शिक्षा का उद्देश्य अनुशासन, ज्ञान और अवसर उपलब्ध कराना है—न कि दिखावे या एकरूपता के नाम पर अतिरिक्त कमाई का साधन बनाना। जब विद्यार्थी रोज़मर्रा के साधारण, साफ-सुथरे कपड़ों में भी आसानी से पढ़ सकते हैं, तो एक महंगा गणवेश या ब्रांडेड बैग अनिवार्य करने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं बचता। शिक्षा को सरल, सुगम और समान रूप से सबके लिए उपलब्ध कराना हर संस्था की जिम्मेदारी है। ऐसे निर्णय इस मूल भावना के विपरीत जाते हैं।

इस प्रकार के अनिवार्य नियम न केवल आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को मानसिक दबाव में डालते हैं, बल्कि शिक्षा में समान अवसर की भावना को भी आघात पहुँचाते हैं। यदि किसी कोचिंग संस्थान को अपना अनुशासन बनाए रखना है, तो वह सरल आचार-संहिता, उचित व्यवहार और सकारात्मक वातावरण से भी हासिल किया जा सकता है—उसके लिए महंगे गणवेश की कोई आवश्यकता नहीं है।

अभिभावकों और समाज को चाहिए कि वे ऐसे आर्थिक बोझ वाले नियमों का शांतिपूर्वक विरोध करें और संस्थानों से यह मांग करें कि शिक्षा को व्यापार नहीं, सेवा मानकर छात्रों की सुविधा और क्षमता को प्राथमिकता दें। सरकार एवं स्थानीय प्रशासन को भी इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कोई भी कोचिंग संस्थान अनिवार्य खरीदारी के नाम पर छात्रों आणि अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ न डाल सके।

शिक्षा तभी सार्थक होगी, जब वह हर बच्चे तक बिना किसी अनावश्यक दबाव के पहुँच सके—यही समय है इस दिशा में आवाज उठाने का।

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